Friday, January 8, 2010

चौसर का खेल

उन्‍हें लगता है
वे खिलाड़ी हैं
शतरंज की बिसात के -
मोहरों को इधर-उधर चलाकर
शह और मात की खुशफहमी में पड़े हैं।
चाल चलनी है
पैदल को पीटना है
हाथी को आगे बढ़ाना है
ऊँट को बचाने के लिए
घोड़े को बीच में रखना है।
रहम आता है उनकी नादानी
पर कोई कठपुतलियों का
नाच नचा रहा है
उन अनजान महारथियों को।

3 comments:

  1. अकाट्य और सार्वजनीन सत्य ...

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  2. स्वागत बलोग जगत में,नववर्ष की मंगलकामना ।

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  3. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

    Sanjay kumar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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