अरे भाई, चलोगे
कहॉं ?
तिलक-ब्रिज
कहॉं पर ?
जीपी.एफ., स्टेशन के पास
चलेंगे, पच्चीस रुपये लगेंगे
हम (मैं और एक गॉंधीवादी मित्र) दो थे।
पच्चीस नहीं, बीस लोगे
अच्छा, बाईस दे देना
मित्र ने कहा – ''छोड़ो, बस से चलते हैं।''
मुझे रिक्शे में बैठना अच्छा लगता है
चाहे मँहगा हो, समय हो यदि।
पता नहीं क्यों :
राजसी शौक –
राम-सीता की तरह रथ में बैठना
रिक्शे का धीरे-धीरे चलना
बैठकर इधर-उधर का अवलोकन
रिक्शे का परंपरागत रूप
रिक्शाचालक के प्रति दया-भाव
उसको भी रोजी-रोटी मिल जाए
खैर --- बैठ गए रिक्शे में –
राजघाट से गॉंधी-पीस-फाउंडेशन की यात्रा के लिए -
स्वदेशी, चरखा, कुटीर उद्योग
शरीर-श्रम, स्पर्श-भावना पर
करते रहे गहन-चर्चा
और वो हमें ढोता रहा
उदास वह भी न था
भोजपुरी गीत गा रहा था
पूछा मैंने -
तुम कब से हो दिल्ली में ?
कहॉं रहते हो ? परिवार कहॉं है ?
रिक्शा अपना है क्या ?
कब तक चलाते हो रिक्शा ?
बोला वो इस सवाली बौछार के बाद-
बिहार से,
यमुना-पुश्ता पर झुग्गी में
बीबी-बच्चे देश में (वह परदेश में है)
किराये पर है रिक्शा
सुबह चार बजे से नौ बजे तक
और सायं आठ से रात ग्यारह बजे तक
खाना ?
सब-मिलकर बना लेते हैं
हॉं – हमारे गॉंव के काफी लोग रहते हैं
सभी रिक्शा चलाते हैं ?
- नहीं, छोटा-मोटा काम करते हैं
: फैक्ट्री में,
: चाट का ठेला, मूँगफली, भुट्टा
: पटरी पर दुकान
: मजदूरी, पुताई
: होटल में - बर्तन मॉंजते
तिलक ब्रिज आ गया -
बाबू जी, आप क्या करते हैं ?
- हम ! हम पढ़ने-लिखने का काम करते है,
आज यहॉं सेमिनार है
झुग्गियॉं गिराई जा रही हैं
इसके खिलाफ
- पैसे बढ़ाएं :
तीस रुपये (बीस और दस का नोट)
उसने दस का नोट वापिस कर दिया
'' बीस ही ठीक है
आप तो हमारे ही हो। ''
अंदर पसीज गया
'' अरे रख लो
तुम्हारा किराया पूरा हो जायेगा
बोहनी समझ लो। ''
उसने नोट माथे पर लगाए
दुआऍं देते हुए
आगे बढ़ गया
किसी ने हाथ देकर, उसे रोका
फिर वही हुज्जत --
'' पंद्रह नहीं, दस लोगे। ''
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
रिक्से के सफ़र का सुन्दर और सजीव चित्रण.शुभकामनायें.
ReplyDelete