Thursday, January 14, 2010

भयंकर भगवान

मैं नहीं जानता
भगवान को कब और किसने
गढ़ा होगा
पर उसके नाम पर
खूब रोटियां सेक रहें हैं
चारों तरफ फैले हुए दलाल और एजेंट
हर मौके : जन्‍म – शादी – मौत : पर
उनको अपना हिस्‍सा चाहिए
कर्मकांड की आड़ में

वो डराते हैं भगवान के नाम पर
लोग डरते हैं भगवान के नाम पर
उनकी दुकानें चलाने में
सब मदद करते हैं
मीडिया - व्‍यापारी - नेता
और कुछ हद तक हम पढ़े - लिखे लोग भी
चुप रहकर या
फिर खुद ही
उस भगवान से डरते हुए
संस्‍कारवश
जिसको न जाने
किस समझदार और भावुक इंसान ने
गढ़ा है

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