मैं नहीं जानता
भगवान को कब और किसने
गढ़ा होगा
पर उसके नाम पर
खूब रोटियां सेक रहें हैं
चारों तरफ फैले हुए दलाल और एजेंट
हर मौके : जन्म – शादी – मौत : पर
उनको अपना हिस्सा चाहिए
कर्मकांड की आड़ में
वो डराते हैं भगवान के नाम पर
लोग डरते हैं भगवान के नाम पर
उनकी दुकानें चलाने में
सब मदद करते हैं
मीडिया - व्यापारी - नेता
और कुछ हद तक हम पढ़े - लिखे लोग भी
चुप रहकर या
फिर खुद ही
उस भगवान से डरते हुए
संस्कारवश
जिसको न जाने
किस समझदार और भावुक इंसान ने
गढ़ा है
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