Wednesday, February 27, 2013

Say HELLO to my little friend






वह बहुत जिद्दी है
अक्‍सर रूठ जाता है
ग़ुस्सा भी हो जाता है
पर चंद मिनटों में
खुद ही मान जाता है
खिलौनों से खेलते हुए
खुले दिल से हंसता है
उसकी अपनी ही भाषा है
हू- भौं की आवाजें करता है
मैं समझ नहीं पाता
उसकी सारी बातें
पर खूब ऊर्जा मिलती है
उस नन्‍हें बालक से
वो मेरा नया दोस्‍ है
वह मुझे परखता नहीं हैं !



Friday, February 22, 2013

डिस- ज्‍वांइट फैमिली

हमारे परिवार में सिर्फ चार सदस्‍य हैं
हम सब अकेले अलग जगह रहते हैं
मेरा ऑफिस है राजधानी दिल्ली में
मैडम जी बुटीक चलाती हैं मुम्‍बई में
बेटी आईटी सेक्टर में है बंगलौर मै
बेटा एमबीए करता है कोलकता में
चारों दिशाओं पर है परिवारी कब्‍जा
सही चाहे आपस में गहरा जज्‍बा ,
हम मोबाइल- नेट पर ही जुड़ पाते हैं
टीवी पर एक ही सीरियल देखते हुए
रिमोट से ही डिनर साथ कर लेते हैं
अकेलापन हम सबको ही अखरता है
पर क्‍या करें फैमिली की खातिर ही
हमें अकेले अलग जगह रहना पड़ता है ;
किसी के पास वक्‍त नहीं कहानी सुनाने का
ही बच्‍चे अब किसी की कहानी सुनते हैं
सब अपने आप में मस्‍त और व्‍यस्‍त हैं
घर में कभी
जब इकठ्ठे हो भी जायें सभी
तो टीवी के रिमोट के लिये
लड़ाई ही होती है
इसलिये दूर से ही
सबका हालचाल पूछ लेते है
इस तरह हम जैसे तैसे
परिवार निभा लेते हैं
सोचकर अपने मन को
थोड़ा सुकून देते हुए कि
हालत तो अभी और खराब होगी
हर शख्‍स और भी अकेला होगा
किसी की बुआमौसी नहीं होगी
कोई मामाचाचा के बिना होगा



Thursday, February 21, 2013

संघर्ष के साथी

आज सुबह जब मैं दफ्तर पहुंचा
वर्कशाप के गेट पर भीड़ जुटी थी
सरकारी वर्करों की
जिनमें अक्‍सर पुरूष ही दिख रहे थे
नारे लग रहे थे जोरशोर से
हकों की मांग करते हुए
सिस्टम को गरियाते हुए -
पर दिहाड़ी पर घास काटने वाली औरतें
उसी गेट से अंदर काम पर जा रहीं थीं
उन्हें किसी ने नहीं रोका या समझाया
वो हड़ताल पर जाने का नहीं सोच सकती
क्‍यूंकि वे तो ठहरीं असंगठित और मजबूर
जो महंगाई की मार झेलते हैं
जिनके पेट कुछ भरे हों
वे ही और मांगते हैं ,
कोई आमरण अनशन पर बैठता है
खुद को मनवाने का इंतजार करते हुये
पर जब कोई आता नहीं बात करने
तो खुद ही तोड़ देता हे व्रत
फेससेविंग के लिये
छोटा समझौता करते हुए
मन को कुछ समझाते हुए  ,
कोई धरने पर बैठता है , कोई चीखता है
कहीं फेसबुकिया आंदोलन चलता है
लाउडस्‍पीकर पर चिल्‍लाने से  
दुकाने बंद करने  से -  गाडि़यां जलाने से
घुड़की और भौं- भौं से
कोई बात नहीं बनेगी
सरकारें बहुत बेशरम हैं
अब तो लड़ना होगा - अड़ना होगा
खिलाफत के जो हथियार भोथरे पड़ चुके
उनकी धार को पैना करना होगा 
 पर उनको साथ लेकर नहीं
जिनके पास खोने के लिये अभी बहुत कुछ है  :
प्रमोशन - सेलरी - पोस्टिंग और ट्रांसफर !


Friday, February 15, 2013

पीले चेहरे वालों का बसंत

सह लेंगे हम जैसे-तैसे
गरमी , बरसात और ठंड
अब तो बस हो जाये अंत
जुल्‍म का , शोषण का
चाहे न आये कभी बसंत 
इंतजार कब तक कोई कैसे करे  
मौसमी सरकार के बदलने का
समस्‍याएं जब हों इतनी ज्‍वलंत
सब कविता की कोरी कल्‍पनायें हैं
जमीन से कभी नहीं मिलता अनंत
अगर रोटी मिल जाये भूखे बच्‍चों को
तो वो ही दे देंगे हमें फूलों की सुगंध ।
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मौसम का चक्‍कर है कहीं गर्मी कहीं ठंड 
सबके जीवन में होते हैं तरह तरह के रंग
दुनिया खेल है द्वंद का कह गए साधु संत
सुख दुख जैसे आते जाते वैसे शीत बसंत
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Thursday, February 14, 2013

नगरों का नक्‍शा

मैं जा रहा था बस में
दिल्‍ली से मुजफ्फरनगर
मेरठ आने से पहले ही
बीसियों कॉलेज नजर आये
इंजीनियरिंग- मेडीकल के  
फैक्‍टरी काम्‍प्‍लेक्‍स की तरह
किसी शहर में भी जाओ
वो वैसा ही लगता है
जहां से चले थे
उस शहर के लिये ,  
लोगों की भीड़
गाडि़यों का शोर
मल्‍टीस्‍टोरी फ्लैट
विज्ञापन के बड़ेऊंचे बोर्ड
सड़को के ऊपर पुल
सडकों के नीचे पुल ,   
शहर फैलते जा रहे हैं
दैत्‍याकार की शैली में 
गांवों-खेतों को लीलते हुए ।

Friday, February 1, 2013

सैंसर

 चाहे किताब जला दो
चाहे फतवा लगा दो
चाहे पेंटिंग को पोत दो
चाहे फिल्‍म को रोक दो
जो तुम्‍हारी नहीं सुनते
उनको जान से मार दो
परंतु कभी भी
आवाज बंद नहीं होगी
चाल मंद नहीं होगी
नया और सच -   
लिखने वालों की
कहने वालों की
दिखाने वालों की
सोचने वालों की ।