अकड़ के उतरे साहब
रेल के डिब्बे से
दोनों हाथ जेब में डाले
जैसे वो कट गए हों
कुली पीछे-पीछे बोझा उठाये
और साहब की बीबी अपने नाज़-नखरे संवारती ,
टकराए अचानक साहब एक खम्भे से
और धम से नीचे गिर पड़े
चिल्लाये : अरे देखकर नहीं चला जाता
खम्भा वहीँ खड़ा रहा
पीछे से कोई बोला-
" ई भाई , इन्हें भी उठा लो सर पर अपने "
आखिर सर ही तो हैं-साहब
हर एक के सर पर सवार
अब दोनों हाथ ज़मीन पर थे
पर अकड़ उनकी ज्यों की त्यों बरक़रार थी-
सीधी सतर लठ्ठ जैसी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment