Tuesday, September 10, 2013


 
 
 
 
 
 
 
 
 
Commune, Community and Communalism

इंसान आता तो अकेला है जिंदगी में

पर जन्‍म से ही अकेला नहीं रह पाता

परिवार, परंपरा और समाज

लेबुल चिपका देते हैं उस पर  

जिन्‍हे असली पहचान मानकर

वह उनको बचाने के लिये

लगा रहता है जिंदगी भर -   

अपने जैसे लोगों को तलाशता है

किसी कम्‍युनिटी में शामिल हो जाता है

या फिर कोई अपना नया ग्रुप बना लेता हे

पर कम्‍युनिटी के कॉमन डिनोमिनेटर से ही  

उसका चरित्र और भविष्‍य भी तय हो जाता है

कोई कम्‍युनिटी कितनी संकीर्ण या उदार होगी  

अक्‍सर अपने अंदर खुलापन नहीं रख पातीं :   

एक जात-मजहब वालों की कम्‍युनिटी

एक क्षेत्र के रहने वालों की कम्‍युनिटी

एक भाषा बोलने वालों की कम्‍युनिटी

देश के मूल निवासियों की कम्‍युनिटी,  

विचार पर आधारित कम्‍युनिटी ही

थोड़ी बहुत मजबूत हो सकती है ;  

अपनी कम्‍युनिटी का स्‍वाभिमान

कब बदल जाता है अहंकार में या फिर  

दूसरी कम्‍युनिटी के प्रति नफरत में

हमें पता नहीं चल पाता

गुंडे और ताकतवर लोग हावी हो जाते हैं

कम्‍युनिटी के मसीहा व रक्षक बन जाते है

और कम्‍युनिटी कम्‍युनल होती चली जाती है ।

Wednesday, September 4, 2013

सीख सके तो सीख













कुछ भी नया सीखना मुश्किल होता है

सिखाना तो और भी मुश्किल होता है

पर सीखना तो फिर भी पड़ता ही है

इसी दुनिया में ही आकर सीखते हैं

हम अपने अभ्‍यास और प्रयास से

कोई सीख जाता है जल्दी - कोई देर से

कोई करता है ज्‍यादा गलतियां - कोई कम

पढ-रटकर, अटककर या भटककर

करनी पड़ती है मेहनत सीखने में

मां के पेट से सीख कर कोई भी नहीं आता

सबका हुनर अपना और अलग ही होता है

ढेर सारे गुरू होते हैं किसी की जिंदगी में  

न कोई सब कुछ जानता है - न जान सकता है

न कोई खुद को जगतगुरू कहला सकता है ,  

मुझको भी अभी बहुत कुछ सीखना है 

इसलिये नितनये शिक्षक तलाशता हूं

दत्‍तात्रेय की तरह !  

Thursday, July 4, 2013

रेडीमेड


 
 
 
 
 
 
 
 
 
जब पूछा मां ने
लंबे सफर पर जाते हुए -  
रास्‍ते के लिए बांध लेती हूं 
बीस परांठे और आलू की सब्जी " -  
मैंने कह तो दिया -  
रहने दो अब सब कुछ
रेडीमेड मिल जाता है -  
पर मैंने सोचा
सच तो है यही है :  
कोई तो बनाता ही होगा रोटी
कोई तो सिलता ही है कपड़े 
कहीं तो कूटे जाते हैं मसाले
कोई तो कंकड़ बीनता है चावलों से 
कोई पापड़ बेलता है - अचार डालता है
ताकि हमको मेहनत न करनी पड़े
मम्‍मी-दादियों के जमाने की ,  
मशीन सब काम नहीं कर सकती
न ही इनसे करवाया जाता है  
अक्‍सर मजदूर सस्‍ता मिल जाता है
आसमान से नहीं टपकतीं बाजार में
सुंदर पैकिंग वाली रेडीमेड चीजें ।

Friday, June 7, 2013

गर्मी का मौसम









पड़ती थी गर्मी तब भी
चलती थी तेज लू भी
आता था पसीना भी
पर नहीं होती थी हमें
इतनी बेचैनी मौसम में
हाथ का पंखा होता था
कच्‍ची मिटृटी का फर्श होता था
गोबर की लिपाई कर  लेते थे
बरामदे में दिन बीत जाता था
नल के नीचे बैठकर
जब मन किया नहा लिये
ताजा पानी से 
छिड़काव करके
रात को छत पर सो जाते थे
खाट बिछाकर  
मच्‍छर कम होते थे
खतरनाक भी नहीं थे
बीस मई को रिजल्‍ट आता था
फिर पूरे तीन महीने की छुटृटी  
कोई होमवर्क नहीं मिलता था
हम नानी के घर चले जाते थे
टेमपरेचर देखने के लिये
घर में टीवी नहीं था
रिश्‍तों में गरमाहट जो होती थी
मौसम की गर्मी सहन हो जाती थी
घड़े का पानी पी लिया करते थे
जब ज्‍यादा गरमी पड़ती थी तो
कभी- कभार
मां बना दिया करती थी
कच्‍ची लस्‍सी और शिकंजी भी ।

Friday, May 3, 2013

पार्टीशन

पार्टीशन - 1

सर की हद
कहां तक है
गला काटकर
बता दिया
जिस्‍म के
बंटवारों ने
अब कौन
करेगा जुर्रत
जाने की
पैरों से
हद के उस पार ।
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पार्टीशन - 2

दो सगे भाई थे  
एक बड़ा खेत था
बंटवारा हो गया
लकीर खिंच गई
कटीले तारों से
चौकसी बढ़ गई  
दोनों खेमों की
हिफाजत के लिये ;
कभी- क्‍भार
गायें और भैंसें
छिल-घिसट कर
घास चरने  
चली जातीं थी
हद लांघ कर ;  
उनकी ताक में
बैठे शिकारी कुत्‍ते
अपनी वफादारी
दिखाते-निभाते थे ,  
बस यही तरीका
बचा था,
जश्‍न मनाने का -
उन भाईयों के लिये ।










Tuesday, April 23, 2013

प्राइवेट बात











दो- तीन महीनों के बाद भी
वाजिब तनख्‍वाह नहीं देते
फैक्‍टरी के कर्मचारियों को
प्राइवेट लिमिटेड के मालिक
खुद सरकारी कंपनियों से  
पेमेंट एडवांस में चाहते हैं
टैक्‍स की चोरी फर्जी रसीदें
सबको वे जमकर लूटते है
लागत और कीमत का है
उनके यहों नहीं कोई रिश्‍ता
बेहिसाब वे मुनाफा कमाते
निजी धंधे का हवाला देकर  
कुछ भी पूछो नहीं हैं बताते
भरते टेंडर सब मिलजुल कर
कम्‍पटीशन को साफ झुठलाकर
सरकार का मजाक उड़ाते
मौज मनाते सबको नचाते ।  
    

Tuesday, April 16, 2013

बाजार के बच्‍चे















कल मैं गया घूमने
सब्‍जी वाले गेट पर
वहां ढेर सारे बच्‍चे थे
अपने माता-पिता की
खूब मदद करते हुये
आलू बेच रहे थे
चिल्‍ला-चिल्‍ला कर :  
ले लो 5 के किलो -
वो स्‍कूल नहीं जाते
पर हिसाब लगा लेते है
उनसे ज्‍यादा जल्‍दी
जो पोटाटो कहते हैं
आलू को इतराकर
पर वो जानते है
आलू से ही बनते हैं
अंकल चिप्‍स
जिन्‍हें खाने का
सपने में भी नहीं
देख या सोच सकते
आलू बेचने वाले बच्‍चे  
 

Friday, April 12, 2013

सर की कार , सर पर सवार

मदमस्‍त हथिनी जैसी
झूम-झूम कर चलती है
नशे में धुत्‍त और चूर
ताकतवर की सत्‍ता
परवाह नहीं करती है
सड़क की - लोगों की
कुचलती ही रहेगी  वो
खिलाफती आवाजों को
जरूरी लगा उसको तो
भून डालेगी इंसानों को
बंदूक की गोलियों से
छोटे-बड़े जलियांवालाबाग
बनते ही रहेंगें घरती पर
सत्‍ता चाहे कोई हो
किसी भी रंगरूप की
किसी भी देशभूप की ,
हाथ में बैशाखी लेकर तो
आम आदमी ही चलेगा
राजाओं को पालकी में
बैठाकर खींचते हुये
शायद इसीलिये
कुरसी के नशे का
मजा लेने के लिये
चलती रहती है
सांठगांठ और जोड़तोड़
हर इलेक्‍शन में
चाहे वह गुरूद्वारे का हो
मोहल्‍ले की सोसाइटी का
सरकारी यूनियन का
गांव की पंचायत का
या फिर महासंसद का !




Friday, April 5, 2013

No to no















जहां नो-ऐन्‍ट्री का बड़ा बोर्ड लगा होता है
अक्‍सर वहीं से सब  प्‍लेटफार्म में घुसते है
मोटे लाल अक्षरों में नो-स्‍मोकिंग लिखा है
वहीं सिगरेट के धुंये से छल्‍ले उड़ाये जाते हैं  
मूतते थूकते है बेझिझक चलते हुये रोड पर
सुलभ शौचालाय पास बने होने के बावजूद
कानून बनाने वाले भी खुश है ताकत पाकर
पकड़ ले किसी को या बख्‍श दें कुछ लेदेकर
थियेटर- मीटिंग में बजते ही रहेंगे मोबाइल
अनुरोध व आदेश चाहे जितना भी कर लो 
वर्जनाओं को तोडने में मजा आता है सबको
आदम ने फल चखकर आदत जो डाल दी है  
नो-पार्किंग में वीआईपी की गाड़ी ही होती है ।

Thursday, March 21, 2013

हम पंडित हैं











पूजापाठ करते हैं हम
बड़े लोगों के घर 
संस्‍कृत के श्‍लोक पढ़ते हुए
जो न हमें समझ आते है
न उन्‍हें समझाने की जरूरत है  
बस कर्मकांड हो जाता है
आस्‍था के त्‍यौहार का
हमारे तोता-रटंत पाठ से
उनका घर शुद्ध हो जाता है
हमें मोटी दक्षिणा मिल जाती है ,
झुग्‍गी के बच्‍चों को प़ढाना
वाकई बहुत मुश्किल है
वे बहुत ऊधम मचाते हैं
अटपटे सवाल पूछते हैं  
रोज नहाते भी नहीं हैं
गंदे-फटे कपड़े पहनते है
वहां पढ़ाना भी फ्री पड़ेगा ,   
इसलिये हम
अफसरों के घर ही जाते हैं
शास्त्रों का पाठ करने के लिये
हम पक्‍के बनिये हैं !  

Friday, March 8, 2013

और-रत


मेरी मां भी वही करती थी
जो आज मेरी बहन करती है
रोटी पकाती है खाना खिलाती है
बर्तन मांजती है कपड़े धोती है
झाडू़ और पोंछा करती है
राशन का हिसाब रखती है
ज्‍यादातर घर में ही रहती है
इन घरेलू कामों को अक्‍सर
महिलायें ही करती हैं
चाहे अपने घर की या बाहर की
जिन्‍हें हम रख लेते हैं मेडसर्वेंट -
आम औरत की हालत वही हे ;
मेरी बेटी के लिये कुछ बदला जरूर है
वो को-एड स्‍कूल में पढ़ने जाती है
खुद ही स्‍कूटी पर बाजार चली जाती है
बस में भी सीटें आरक्षित तो होती ही हैं
महिलाओं  के लिये
चाहे उस पर बैठे रहें आदमी बेशर्म होकर
मोबाइल पर लड़कों से बात कर सकती है
कपड़ों पर अब पहले सी पाबंदी नहीं है
पर उसकी मां उसे समझाती रहती है -
कुछ घर का काम भी सीख ले बेटी
तुझे पराये घर जाना है
जो न जाने तुझे कैसा मिले
नौकरी के क्षेत्र भी सीमित ही हैं
मध्‍यमवर्गीय लड़की के लिये
स्‍टनो-नर्स-रिसेप्‍शन-आपरेटर 
औरत का एक खास दिन मनाकर  
हम उसे अहसास कराते हैं
मजदूर की तरह
जो मजबूर है जीने के लिये
गैरबराबरी के समाज में ;   
पार्टियों में लेडीस फर्स्‍ट कहकर
हम थोड़ा शालीन बन जाते है
पर घर में औरतों को
रोटी लास्‍ट में ही मिलती है
नुमाइश की चीज समझकर
चीफ गैस्‍ट को बुके स्‍त्री से ही दिलवाते हैं
वंदना की रस्‍म भी वही अदा करती है ,
जेंडर-बायस के आरोप से
बचने के लिये
किताब के शुरू में ही लिख देते है 
आदमी के आगे कोष्‍ठक लगाकर
इसका मतलब नारी भी समझा जाये ;   
घर के बहुत सारे काम तो
आदमी भी बखूबी कर सकते है
और उन्‍हें करने भी जरूर चाहियें
जैसे बच्‍चे की टट्टी धोना
चाय बनाना , खाना परोसना
कपडे इस्‍तरी करना -
तभी अहमियत महसूस होगी
हमें घर संभालने वाली की ।
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आधा है चन्‍द्रमा, रात आधी
आधी है अपनी आबादी
इस आधे-अधूरे जीवन में
हक है हमारा आजादी
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Friday, March 1, 2013

मार्च का तिगड़मी महीना













सता रही है किसी को
टैक्‍स बचाने की फिक्र 
सुनाई देता हर तरफ
सेल-टारगेट का जिक्र
कोई चालान काट jरहा है  
करते हुए ट्रैफिक को जाम
नींद उड़ गई बच्‍चों की भी
चल रहा है उनका एक्‍जाम
सबकी छुट्टी रद्द करते हुए  
सरकार लगी है जोर-शोर से
अपने बहीखाते पूरे करने में
यह क्‍लोजिंग महीना है
बैलेंसशीट और सीआर का ,
अगला साल शुरू होने को है  
1 अप्रैल से  
मूरख बनाने के लिये
आम आदमी और औरत को !

Wednesday, February 27, 2013

Say HELLO to my little friend






वह बहुत जिद्दी है
अक्‍सर रूठ जाता है
ग़ुस्सा भी हो जाता है
पर चंद मिनटों में
खुद ही मान जाता है
खिलौनों से खेलते हुए
खुले दिल से हंसता है
उसकी अपनी ही भाषा है
हू- भौं की आवाजें करता है
मैं समझ नहीं पाता
उसकी सारी बातें
पर खूब ऊर्जा मिलती है
उस नन्‍हें बालक से
वो मेरा नया दोस्‍ है
वह मुझे परखता नहीं हैं !



Friday, February 22, 2013

डिस- ज्‍वांइट फैमिली

हमारे परिवार में सिर्फ चार सदस्‍य हैं
हम सब अकेले अलग जगह रहते हैं
मेरा ऑफिस है राजधानी दिल्ली में
मैडम जी बुटीक चलाती हैं मुम्‍बई में
बेटी आईटी सेक्टर में है बंगलौर मै
बेटा एमबीए करता है कोलकता में
चारों दिशाओं पर है परिवारी कब्‍जा
सही चाहे आपस में गहरा जज्‍बा ,
हम मोबाइल- नेट पर ही जुड़ पाते हैं
टीवी पर एक ही सीरियल देखते हुए
रिमोट से ही डिनर साथ कर लेते हैं
अकेलापन हम सबको ही अखरता है
पर क्‍या करें फैमिली की खातिर ही
हमें अकेले अलग जगह रहना पड़ता है ;
किसी के पास वक्‍त नहीं कहानी सुनाने का
ही बच्‍चे अब किसी की कहानी सुनते हैं
सब अपने आप में मस्‍त और व्‍यस्‍त हैं
घर में कभी
जब इकठ्ठे हो भी जायें सभी
तो टीवी के रिमोट के लिये
लड़ाई ही होती है
इसलिये दूर से ही
सबका हालचाल पूछ लेते है
इस तरह हम जैसे तैसे
परिवार निभा लेते हैं
सोचकर अपने मन को
थोड़ा सुकून देते हुए कि
हालत तो अभी और खराब होगी
हर शख्‍स और भी अकेला होगा
किसी की बुआमौसी नहीं होगी
कोई मामाचाचा के बिना होगा