Monday, October 31, 2011

क्‍यू से क्‍वैशन

क्‍यू इतनी लंबी क्‍यूं है
क्‍यू में मैं क्‍यूं लगूं
काउंटर ज्‍यादा क्‍यूं नहीं हैं
कम्‍प्‍यूटर कम क्‍यूं हैं
लोग काम फुर्ती से क्‍यूं नहीं करते
प्रोपर सिस्‍टम क्‍यू नहीं बनता
टोकन डिस्‍प्‍ले क्‍यूं नही होता
इंतजार नहीं होता अब
आयेगा मेरा नम्‍बर कब !
क्‍यू में खुद खड़े होकर ही
अहसास होता है
सरकारी नियमों के
चक्रव्‍यूह में डलझे हुए
आम आदमी की
तकलीफ और दिक्‍कत का :
काम कहां होगा
काम कैसे होगा
काम कब होगा !


किसी को सब्र नहीं
उसूलों की कद्र नहीं
क्‍यू तोड़ने में
लोगो को आता है मजा
क्‍यूंकि नहीं मिलती उन्‍हें
इस गलती की सख्‍त सजा ,
बाइपास करने के लिए क्‍यू
कनैक्‍शन निकालते हैं
सेटिंग करते हैं
ऊपर से फोन कराते है
सिफारिश लगवाते हैं
एजेंट को ढूंढते है
बैक-डोर से अंदर जाते है
और फिर चढ़ाते हैं
तत्‍काली मेवा
सेवा की स्‍पीड
बढाने के लिए ।
सोचता हूं
ऐसा ही होता होगा
आगुंतकों के साथ
मेंरे ऑफिस मे भी ,
पब्लिक टायलेट की तरह
हर पब्लिक ऑफिस की
हालत बहुत गंदी है
सफाई बहुत जरूरी है
सवाल उठाना ही काफी नहीं
जवाब भी जरूरी है
जिम्‍मेदारी हम सबकी है
रिश्‍वत लेना भी गलत है
रिश्‍वत देना भी गलत है ।