एक-सी वर्दी पहने हुए
सड़क पर मार्च करती भीड़ के लोगों से
मुझे डर लगता है।
चाहे वह केसरिया वाले साधु हों
चाहे आर्मी के जवान
चाहे श्वेत साड़ी वाली बहनें
चाहे ईद पर जा रहे नमाजी
या फिर खादी वाले गांधीवादी।
न जाने कब जुनून सवार हो जाए
औरों की शामत आ जाए।
यूनिफार्म व्यक्तित्व का हनन है
और इंसान की नुमाईश
बस यह स्कूली बच्चों के
लोक नृत्य में ही अच्छी लगती है।
अभी रंग-बिरंगे गंदे
और मटमैले कपड़े वाले
लोग दिखे हैं
जो रिक्शे चला रहे हैं
जो चाय बना रहे हैं
और गुब्बारे बेच रहे हैं
तभी तो हौंसला बना है मुझमें
भीड़ की विपरीत दिशा में चलने का।
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