Monday, February 1, 2010

बिक्री-घर

अफसर की कोठी
रंडी का कोठा
एक जगह जमीर बिकता है
दूजी जगह शारीर
दलाल भी दोनों जगह हैं
नाच दोनों जगह चलता है
मेक अप और मास्क के पीछे
खरीददारों के लिए
अफसर में कोई अल्हड लावण्य नहीं
उसके पास कोई बिस्तर भी नहीं
बस कुर्सी और कलम का कमाल है
कोठा कोठी से बड़ा है
वहां पेशा ईमानदारी से चलता है
पर कोठी का दाम बढ़ता जा रहा है
और कोठे को पुलिस वाले बंद कराते जा रहे हैं

2 comments:

  1. aajkal kothon ki kami nahi hai. police chouki our nyaayalay ke bare me aapke kya khayal hain.? ? ?

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  2. कडुवी सच्चाई है. अरविन्द जी के कथन पर भी गौर करें.

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