लोग मेरा सरनेम पूछते हैं या
फिर टटोलकर बायोडाटा
मेरी कैटेगरी जानना चाहते हैं
मुझे असुरक्षित महसूस कराने के लिए
आरक्षित होने के कारण
उनकी नज़रों में खटकता हूँ
जैसे कोई अपराधी हूँ मैं
उनकी जन्म-सिद्ध अधिकार की
रोटी का हिस्सा छीनता
अपने विशेषाधिकार से
क्या सर जमीन पर रगड़ने से
तुम चल सकते हो ?
और छाती -जांघ से तो तुम
चलने की सोच भी नहीं सकते ,
अपने दिमाग और दिल का इलाज कराओ
जो अहम् के नशे में ख़राब हो चुके हैं
हम हाथ-पाँव हैं समाजी-शरीर के
पैरों की बदौलत ही टिका पाते हो
अपना बोझ धरती पर और
हाथ से ही कौर दाल पाते हो रोटी की
जिसकी भूख हमें भी है
जिंदा रहने के लिए
टहलने-दौड़ने के लिए
हमें भी मजबूत रखो
समाज को लूला-लंगड़ा मत बनाओ
हमारा नाम मत पूछो
नाम में क्या रखा है
काम देखो
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गहन रचना...
ReplyDeleteसुंदर और गहन रचना...
ReplyDeleteबहुत खूब बडिया धन्यवाद्
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