औरत पीछे बैठे सीट पर
या चलाये स्कूटर
क्या फर्क पड़ता है-
हम बाज़ार तो घूम आये.
औरत बाँझ हो
या आदमी नपुंसक
क्या फर्क पड़ता है-
हम बेऔलाद ही रहे.
औरत घर संभाले
या काम करे दफ्तर में
क्या फर्क पड़ता है-
हमें घर तो चलाना है.
औरत नीचे रहे बिस्तर में
या ऊपर
क्या फर्क पड़ता है –
हमें विवाह का निर्वाह तो करना है.
फिर क्यूँ चाहियें
औरत को ही-
पिता, भाई , पति या पुत्र
अपने इर्द-गिर्द
पहचान और हिफाज़त के लिए.
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