मेरे और उनके बीच
लोहे की मोटो सलाखें हैं
मुझे कैदी वो लगते हैं
और उन्हें मैं ,
पर चूँकि उनकी जमात ज्यादा है
तो आवाज़ तो उन्ही की सुनाई देगी .
समाज की समझ
और परंपरा की इज्जत को
मुझसे खतरा है.
वो मुझे सूली पर लटका देंगें
उनसे अलग सोचने के जुर्म में
और अगर फिर भी कुछ दम
बाकी रहा मुझमें
तो तानों के पत्थर मार-मार कर
मुझे खदेड़ देंगें
पागलघर में,
जहां से मेरी चीखें
उनकी मीठी नींद में
खलल नहीं डालेंगी.
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