Friday, December 21, 2012

एक बीमार सौ अनार

पार्टी में सब चल रहा था  ठीक
साहब को आ गई अचानक छींक
अफरा तफरी मच गई
किसी ने जेब से रूमाल निकाला
कोई अखबार से पंखा झेलने लगा
कोई दौड़कर पानी की बोतल लाया
किसी ने डॉक्‍टर को मोबाइल मिलाया
चारों तरफ खबर फैल गई
लोग मिलने आने लगे
पपीते और अनार लेकर
फूलों के गुलदस्‍ते लेकर
दुआयें कर रहे थे अब सैकड़ो हाथ
आखिर वो थे दफ्तर के बड़े साहब !

Wednesday, December 12, 2012

नम्‍बर गेम और मैजिक फिगर

गणित बहुत महत्‍वपूर्ण विषय है
इसके समुचित ज्ञान के बिना
कोई इंजीनियर नहीं बन सकता  
बिजनेस नहीं चलाया जा सकता
संसद भी नहीं चल सकती ,  
जुगाड़ और तिगड़मबाजी के दौर में
समझौता करने के लिए
तालमेल बैठाने लिए
निहायत जरूरी है
समीकरण और अंकगणित की जानकारी
मैनेजमेंट और मैनीपुलेशन के लिए ,   
किसको खरीदना है कितने में
किसको बेचना है कितने में
किसके अंक में बैठना है
किसके संग रहना सोना है
किसको इफ्तार पार्टी में बुलाना है
मुस्लिम भाई को कहां से टिकट देना है
नफा-नुकसान का हिसाब लगाना है
काम आ सकने वालों से ही रिश्‍ते बनाने है ,  
इंसटैंट और फटाफट के इस जमाने में
कोई किसी का पक्‍का दोस्‍त नहीं होता
वक्‍त पे जो आज हमारे काम आ गया
बस वो ही अपना सगा और सखा है
भाई- बहनों ! हमारा तो यही नारा है
मैं तुम्‍हें नोट दूंगा - तुम मुझे वोट देना
मैं तुम्‍हें बचाऊंगा -  तुम मुझे बचा लेना।







12.12.2012

बारहवें महीने की
बारह तारीख को
ठीक बारह बजकर
बारह मिनट और
बारहवें सेकेंड में
अगर डिलीवरी हो भी गई
तो क्‍या जादुई हो जायेगा
वो नवागन्‍तुक शिशु
या कोई मर गया
ऐन इसी वक्‍त
तो वो तथागत हो जायेगा
दुनिया न जाने कब बनी थी
न जाने कब तक चलेगी
पर दुनिया के अचानक
लुप्‍त हो जाने की खबर
रोमांच पैदा नहीं करती
बस अपना दिल बहलाने को
इक्‍कीसवीं शताब्‍दी में
बारहवीं शताब्‍दी की सोच का
यह खयाल अच्‍छा लगता है ।

Friday, December 7, 2012

हाईब्रिड

चौकोर तरबूज
गोल केला
संतरे जैसे नींबू
लौकी- सी भिंडी
बिल्‍ली जैसा चूहा
औरत- सा आदमी
आदमी जैसा कम्‍प्‍यूटर !

सावधान ! हम आ रहे हैं

हम ग्‍लोबल हैं
तुम लोकल हो
हम ही केंद्र में हैं
तुम तो परिधि हो
हमें पूरा हक है
तुम्‍हें लूटने का
तुम्‍हारा फर्ज हैं
खुद को सौंप दो
हमारे पास तकनीक हैं
तुम्‍हारे पास आबादी है
तुम्‍हारे लड़के-लड़कियां
टाई और स्‍कर्ट पहनकर
तुम्‍हें ही बेचेंगे
हमारे स्‍टोर से सामान
सुंदर पैकिंग में
पहले हर माल सड़क पर  मिलता था
अब हर सड़क पर हमारा मॉल खुलेगा !















Thursday, December 6, 2012

भगवा और काला

दिसम्‍बर के आते ही
ठंड तेज होने लगती है
जख्‍म हरे हो जाते हैं
चाहे संयोग ही हो
बीस बरस पहले
संविधान के निर्माता की
पुण्‍य-तिथि पर ही
घर्मनिरपेक्षता को भूलकर
सरकारी तंत्र ने बखूबी
दंगाइयों का साथ दिया
मस्जिद को तोड़ने में
वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता
तारीख , साल जगह का
चौरासी - बानवे या 2002
दिल्‍ली, अयोध्‍या या गोघरा
सरकारों ने धोखा ही दिया है
किये वायदों को न निभाकर
जिम्‍मेदारी से मुंह मोड़कर
लोगों का यकीन तोड़कर  ;
मुसलमान या ईसाई
नहीं बन सकते सब
न ही सबको हिन्‍दू
बनाया जा सकता है
रंगबिरंगे फूलों से ही
बगीचा सुंदर बनता है ।

रघुपति राघव राजा राम

जमीन तो बनी थी
लोगों के रहने के लिए
हड़प कर जमींदारों ने
उसके दाम बढ़ा दिए
राजाओं ने महल बनाये
राजपुरोहित नियुक्‍त किये
मंदिर और मस्जिद बनवाये
पंडित , ज्ञानी और मौलवी
बहुत ताकतवर हो गये
वे सियासत करने लगे
तोडने और बांटने की ,
जमीन के इस टुकड़े की
दास्‍तान भी कुछ ऐसी ही है
खींचकर लक्ष्‍मण-रेखा कोर्ट ने
घोषित कर दिया उसे
विवादित स्‍थल
वक्‍त गुजरता जा रहा है
अर्थ हावी है घर्म पर
लगता है अब
कोई बाहरी ताकत ही
पहेली सुलझा पायेगी
विदेशी निवेश की खातिर
खुदाई के लिये
प्रापर्टी ट्रांसफर करवाकर
कोई मल्‍टीनेशनल कम्‍पनी
सरयू के पानी को
रामामृत बनाकर बिकवायेगी ।





Thursday, November 29, 2012

आम के नाम - गुठली के दाम

आम चूसने वाले खास लोग
अक्‍सर उन्‍हें गिनते नहीं हैं
आम का वो अचार बनाते हैं
आदमी को लाचार बनाते हैं ,
अब दीवाने हैं अचानक सब -  
आम की फिक्र करते हुये
देते हैं वोट के लिए नोट
बुलाते हैं उसे आप कहकर
दाम बढ़ रहे है आम के
महगाई के गर्म बाजार में -  
हवा के रूख को देखकर
यारो ,  लगता है मुझको
आम चुनाव का मौसम
कुछ नजदीक आ रहा है !

Monday, November 19, 2012

राम नाम सत्‍य है

देश के सबसे बड़े शहर बम्‍बई में
उसका जनाजा निकला
जिसमें शामिल हुए लाखों लोग
महानगरी के तीन बड़े बंदर भी -  
फिल्‍म , बिजनेस और पालिटिक्‍स के ,   
वह वाकई बहुत पॉपुलर था
उसे नकारा बिल्‍कुल नहीं जा सकता
कार्टून से गुदगुदाता होगा कभी
पर जब से मैंने उसे पढ़ा-सुना
वह कलम से तलवार और बाण चलाता था
वाणी से बस जहर और आग उगलता था
हमेशा कड़वाहट भरी तीखी बातें बोलता था
हिटलर उसका रोल मॉडल था
सब को डराता था , खुद नहीं डरता था
अपनी बनाई सेना को
कमांडर की तरह
कत्‍लेआम के लिए हुक्‍म देता था
हिंसा के लिए भड़काता और उकसाता था
चाहें आतंकवादी न कहें हम उसे
वह नहीं था अलग उस प्रजाति से
जिसमें रखेगा इतिहास
भिंडरावाला, ओसामा या जार्जबुश को ,
क्षेत्रीयवाद का हिमायती था
वह रखता था दिल में
हिंदुस्‍तान से ऊपर हिन्‍दू को
राष्‍ट्र से ऊपर महाराष्‍ट्र को
पाकिस्‍तान को पड़ोसी नहीं
भारत का दुशमन मानता था,
उसकी नजर छोटी थी
वह संस्‍कृति की दुहाई देता था
पर दलितों का घोर विरोधी था
नरक कौन जाता हे मरने के बाद
मैं यह तो नहीं जानता ठीक से
पर जो स्‍वर्ग भोग चुका हो धरती पर
उसे अब मै स्‍वर्गवासी नहीं कह सकता
खूब शान-शौकत से रहता था
वाइन, बीयर और सिगार की चुस्कियां लेते हुए
रिमोट से सरकार चलाता था
वह किंगमेकर-बिगबॉस- डॉन था
अहंकारी था रावण की तरह
पर वह कट्टर रामभक्‍त था
उसे किसी की परवाह नहीं थी
खुद को कानून से ऊपर मानता था
वह बकैत था , वह जुनूनी था , वह अराजकतावादी था !
किसी की मौत पर रोने में कोई हर्ज नहीं है
पर मीडिया जब उसे शेर बनाने में लगा हो
तो सिक्‍के का दूसरा पहलू रखना
मैं अपना फर्ज समझता हूं
उसे राजकीय सम्‍मान क्‍यूं दिया गया ?
जिसने संविधान की जमकर धज्जियां उड़ाईं
जिसने समाज में दहशत और नफरत फैलाई
जिसने कोर्ट और पुलिस का मजाक बनाया
तर्जनी दिखाकर सबको धमकाया-सहमाया
मैं भली-भांति जानता हूं यह शिष्‍टाचार कि
किसी की विदाई पर उसकी तारीफ ही करनी चाहिए
पर क्‍या करूं -   मुझे रात भर परेशान किया
उस भगवाधारी प्रेत ने
जो अपनी अजीब विकारधारा लेकर
छाया रहा समाज में किसी साये की तरह
वह खुद तो अपनी शर्तों पर जीता था
पर दूसरों के जीने के लिये शर्तें रखता था
उसने कभी नहीं लिखा-कहा
गरीबी- महंगाई- भ्रष्‍टाचार के खिलाफ
या महाराष्‍ट्र के किसानों की खुदकुशी के बारे में
वह तो पाकिस्‍तान-वेलेंटाइन-गैरमराठी जैसे  
बड़े मुद्दों में उलझा रहा
सियासत का नया मॉडल रच गया
नफरत का जो बीज लगा गया
क्रिक्रेट की पिच खोदकर
उसको हमारी चुप्‍पी से
फसल उगलने में मदद मिलेगी
इसलिए मुझे लिखना जरूरी लगा
इसे श्रद्धांजलि समझो या न समझो
उसकी आत्‍मा को भगवान शांति दें
कैडर को सदभाव के लिये दिशा दे ।

Monday, November 12, 2012

कुदरत का कारखाना

कहते हैं
उनके अनंत हाथ थे
जिनसे उन्‍होने बनाई
अजब-गजब चीजें
मसलन
देवी- देवताओं के महल
इन्‍द्रपुरी  और  यमपुरी
रथ और पुष्‍पक विमान
त्रिशूल और सुदर्शन चक्र
और तो और
सोने की लंका भी ,
सच हो या न हो
पर करते हैं पूजा जब
इतने बड़े कार्यों को
करने वाले कारीगर की
तो हम अपना काम
क्‍यूं बंद कर देते है
औजारों की पूजा से
जश्‍न मनाते हुए
कर्म ही पूजा “ -  की जगह
सिर्फ पूजा ही कर्म बन जाता है
गुणगान करते हुए
देने वाले देवताओं के
लगे रहते हैं खुद
पैसा बटोरने में,  
लुहार-कुम्‍हार-सुनार-बढ़ई को
उनका वंशज तो मानते हैं
पर कोई उनके काम की
सच्‍ची कद्र नहीं करता
इसीलिए तो सभी
अपने बच्‍चों को
दिमागी नौकरी में
भेजने के लिए 
जुटे-पिटे रहते है
हकीकत जानने के बावजूद
पुरानी-मनगढ़त बातों की
भावनाओं की रौ मे
हम बहे चले जाते हैं
परम्‍परा- संस्‍कृति की
दुहाई देते हुए
मन तो बहल जाता हे
पर पौराणिक ग्रंथियां
कुछ और जटिल
होती जाती हैं
हर बीतते पल के साथ ।

अंघेरे से उजाले की ओर

कैसे कहूं मैं दीवाली आई है
चाइनीज बल्‍बों की झालर है
पैकेट में ड्राईफ्रूट- मिठाई है
घर में नहीं बनते पकवान
कैफे से काफी मंगवाई है
बाजार में बहुत मंहगाई है ,
सब आसान है
तेल निकल जाता था
मिट्टी के दीयों मे
घी डालते - बाती लगाते
अब स्विच ऑन करते ही
जगमगाने लगाती है मुंडेर
कितनी रातें जलाओ
कोई मेहनत नहीं ,
नाजुक फुलझड़ी की  
चमचमाती रोशनी
कहीं दब गई है
ताकतवर बमों की आवाज में ,  
न वो थाल में सजे हुये खील-बताशे
न ही खांड के वो मीठे-प्‍यारे खिलौने
न चाक से लाया दीपक न रूई की बाती
न कोई खास खुशी न ही नैनों में ज्‍योति ,  
ऑफिस में छुट्टी का माहौल देखकर
पटाखों की कनफोड़ू आवाज सुनकर
हैवी डिस्‍काउंट के विज्ञापन पढ़कर
जुये और शराब की खबरें सुनकर
गिफ्टें ढोते हुए लोगों को देखकर
लगता है मुझको भी ,  दोस्‍तों
अब दीवाली आ ही गई है
किसी ने मुझसे पूछा - 
दो दीवाली क्‍यूं मनाते है !
मैंने सोचा -  ठीक ही तो है
छोटी दीवाली भारत की आम जनता के लिए
बड़ी दीवाली इंडिया के बिग  बॉसेज के लिए
अमीर और व्‍यापारी की ही सच्‍ची दीवाली है
गरीब और ग्राहक का तो निकलता दिवाला है ।
भाषा बदल रही है -  शैली बदल रही है
हम प्‍लास्टिक और कम्‍प्‍यूटर के युग में
आगे निकल चुके हैं ; रा1 से रैम की ओर ।

Tuesday, November 6, 2012

फेस्‍टीवल ऑफ करप्‍शन

हमारे तीन राष्‍ट्रीय पर्व हैं -    
15 अगस्‍त, 26 जनवरी व 2 अक्‍टूबर
पर इन सबसे महत्‍वपूर्ण है
दीपावली का त्‍यौहार
जब मिलती हैं
पापा को
ढेर सारी गिफ्ट उनसे
जिनसे उनका रिश्‍ता है
ऑफिसी और कुर्सीला ,
राम या रावण
कोई भी जीते
अपनी बला से
हमें तो मतलब
सिर्फ मिठाई से ,
इस बार आ गये
कुछ ज्‍यादा ही डब्‍बे
अम्‍मा ने कहा
जा बेटा
थोड़ा दे आ
उस बुढ्ढे बाबा को भी
जो मांगता रहता है
अल्‍लाह के नाम पर
उससे जयश्रीराम
जरूर बुलवाना
हो सकता है
राम जी इसी से
खुश हो जायें
हमारी जिंदगी में
रौशनी हो जाये।

इरोम चानू शर्मिला को सलाम करते हुए

बैठी है वो अनशन पर
पिछले बारह  सालों से
खिलाफत में
उस काले कानून के
जिसकी आड़ में
दुनिया के सबसे बड़े
लोकतंत्र की सरकार
करा देती है कत्‍ल
स्‍वदेशी सेना से  
अपने ही लोगों का
बहरे कान सिर्फ सुनते ही नहीं
उन पर पर जूं भी नहीं रेंगती
हे बापू ।
उन्‍हें माफ करना
वो नहीं जानते
वो क्‍या कर रहें हैं
वो बेशर्म और चालू हैं
फोटो लगाकर आपकी
बस करेंसी चला रहें हैं
सत्‍य और अहिंसा का
जमकर मजाक उड़ा रहे हैं ,  
एक और विनती है  
हिम्‍मत देना अपनी
इरोम जैसे आम लोगों को
जो संघर्षरत हैं
अंधेरे के खिलाफ
दीप जलाने को
अमन व भाईचारे का ।

Tuesday, October 30, 2012

मोटीवेशन

पुचकारती हुई
छोटी बच्‍ची को
मां बोली - 
गुडि़या रानी
दूध का गिलास
जल्‍दी फिनिश कर  दो  
फिर डोरेमन देख लेना ;
दसवीं क्‍लास में
पढ़ रहे बेटे को
पापा बोले - 
गुड्डू राजा  
सिर्फ 2 घंटे पढ़ लो
फिर खेलने चले जाना ;
कुछ नहीं बोलते
पापा को उनके
सुपरवाइजर -   
वो खुद ही 2 घंटे
काम करने के बाद
फ्री हो जाते हैं
पूरी तनख्‍वाह के अलावा
उतना ही इंसेटिव पाते हैं
किक्रेट खेल नहीं सकते
इसलिए दिन भर
ताश खेलते हैं
दूध पीने की उम्र नहीं रही
इसलिए डटकर
सोमरस पीते हैं ;
खूब सोते है
सुनते हुये मोबाइल पर
शीला- मुन्‍नी के सांग्‍स
ऐश , मौज और मस्‍ती है
सरकारी नौकरी सस्‍ती है ,
प्रेरित करने के लिए
हमने बनाई थी  
जो स्‍कीम
अब करने लगी है 
वही हमें पीडि़त ।

Friday, October 26, 2012

विडम्‍बना

" गौ - हत्‍या बंद हो   के नारे लगाने वाले धार्मिक लोग
भैसहत्‍या बंद करने की बात क्‍यूं नहीं करते हैं
गंगा की गंदगी को मु्द्दा बनाने वाले  आंदोलनकारी
नर्मदा पर बांध बनता देख आखिर चुप क्‍यूं रहते हैं
अंबानी-टाटा-बिरला रोज सबको दिन- दहाड़े लूटते  हैं
हम सिर्फ वालमार्ट से ही सहमे और डरे रहते हैं
काले धन की चर्चाओं में उलझे हुए देशभक्‍त लोग   
मंदिर , गुरूद्वारे व आश्रमों मे क्‍यूं गुप्‍तदान करते हैं
सरकार के भ्रष्‍टाचार को हम लाख कोसते रहें , दोस्‍तो
कारपोरेट सेक्‍टर के करप्‍शन को भी हम ही पोसते  हैं 

Thursday, October 25, 2012

मैं क्‍या करूं ?


सबर करो भई सबर करो
औरों की कम फिकर करो
वक्‍त पे अपना काम करो
खुद को ही तुम ठीक करो
सड़क का कूडा़ साफ करो
जो कहते हो वो ही करो
इंसाफ के लिए जरूर लड़ो
पर धीमी-मीठी बात करो
बच्‍चों को जो सिखलाते हो
खुद तो उस पर अमल करो
दिल की तुम आवाज सुनो
सही लगे मन को , वो करो
कुछ भी साथ नहीं है जाता
दौलत मत तुम जमा करो
थोड़ा तो तुम रब से डरो
जीते जी अंदर से न मरो
नये समाज का सृजन करो

Friday, October 19, 2012

उसकी कमीज मेरी कमीज से काली है

 बज गया ढोल
खुल गई पोल
कुश्‍ती का अखाड़ा
एक - दूजे को पछाड़ा
ये भी गंदे
वे भी गंदे
कर के उन्‍हें नंगे
हमने सनसनी फैलाई
अपनी फोटो खिंचवाई
कीचड़ उछाला
होगा उजाला
सट्टा लगाकर
सत्‍ता चलाई
बजाओ ताली
दो सबको गाली
कुछ तो हो रहा है
कोई तो रो रहा है
न बड़ा है न बच्‍चा
कोई न इससे बचा
खेल ही ऐसा
उलझाये पैसा
कुंआ और खाई
जायें कहां भाई
कैसे लडें ,  कैसे मरें
आख्रिर हम क्‍या करें
सब हैं गोलमोल
मनवा ,
तू तो  बस
अपनी जय बोल
अपनी जय बोल ।


Wednesday, October 17, 2012

दुर्बल को न सताइए

सरकार टैक्‍स वसूलती है
आम आदमी को
पानी-बिजली जैसी
बेसिक सहूलियत देने के लिए
एनजीओ जमा करते हैं
चंदा और फंड
बेसहारा लोगों की
मदद करने के लिए
पब्लिक के पैसे लगाकर
प्राइवेट कम्‍पनी सड़क बनाती हे
उसे टोल टैक्‍स से चलाती है
पब्लिक की जेब काटकर  
सब खिलवाड़ करते हैं
हां , गरीब खिलौना है
कोई उसे कस्‍टोमर बनाता है
कोई उसे क्‍लायेंट बनाता है
सब अपनी सेवा कर रहे हैं
उसके नाम पर
सरकार स्‍कीम चलाती है
कंपनी सीएसआर विंग खोलती है
डाकू और कसाई हैं
सारे हुक्‍मरान - 
चाहे पूरे सरकारी  
चाहे आधे सरकारी
चाहे गैर सरकारी -
वे ताकतवर हैं
वे मजाक उड़ाते है
गरीब का ,  गरीबी का
एसी में बैठकर
लंबी बहसें करते हुए
सुटृटा और पैग लगाकर
विकलांगता का प्रतिशत
तय करने के लिए ।


Wednesday, October 10, 2012

राष्‍ट्रीय जानवर

लॉमी है स्‍मार्ट
वह चापलूसी कर सकता है
उसके पास मीठी बाते है
बहाने और दलीलें हैं
अंगूर का लालची है
न लपक पाने पर
उन्‍हें खटृटा कहता है 
वह चालाक और शातिर है
शतरंज का खूब माहिर है
आगे की चालों से सतर्क
अपने कागजात ठीक रखता है
फाइल का पूरा पेट भरता है
बढि़या और ज्‍यादा अंग्रेजी लिखकर
सीधी बात को टेढ़ी कर सकता है
गलत को सही बना दिखा सकता है
उसकी नजर बस रोटी पर टिकी रहती है
पेट के लिए वह जमीर  बेच सकता है
उसको अपना काम निकालना आता है
जरूरत के मुताबिक वह
कुछ भी बन सकता है
किसी की खाल ओढ़कर
किसी को भी अपना बना सकता है
टॉमी है -  अलर्ट और वफादार
किंतु वह सिर्फ भौंकता है -  गुर्राता है
कभी - कभार ही काटता हे
इसलिए लॉमी का बोलबाला है
आज समाज में हर तरफ
नौकरी , बिजनेस और पॉलिटिक्‍स मे
सही कहा जॉर्ज ऑरवेल ने  -   
सारे जानवर बराबर हैं
पर कुछ जानवर
औरों से ज्‍यादा बराबर हैं   -  
लोमड़ी किसी देवता का वाहन नहीं
इसलिए यह धर्मनिरपेक्ष भी है
इसे ही होना ही चाहिए
राष्‍टीय और सामाजिक जानवर - 
जो मरे तो भी कहे
लो -  मरो ,   सब मरो   


Thursday, October 4, 2012

रामराज और फादर्स-डे

परसों था दो अक्‍टूबर
राष्‍ट्रपिता गांधी जी की
जन्‍मतिथि पर राष्‍ट्रीय अवकाश
सारे सरकारी ऑफिस और स्‍कूल - कालेज बंद
इस दिन कहीं कोई झंडा नहीं फहराया जाता
न ही है यह ईद- दीपावली-क्रिसमस
जैसा कोई त्‍यौहार
जिसे चाहे सब लोग न मनाएं
किंतु उस धर्म-समुदाय विशेष के
मानने वाले तो मना लेते हैं ,
जब मैंने पूछा अपने सहकर्मी से -
“ कैसे बितायी छुटृटी इस साल
बापू - शास्‍त्री के जन्‍म दिन की ? “
तो वे बोले -
“ सुबह खूब देर तक सोये
टी-शर्ट और जींस पहनकर
बाजार गए चाउमीन खाने
दोपहर बाद टीवी पर एक्‍शन मूवी देखी
गपशप मारी
नौकर को गरिआया
शाम को मंदिर टहल आए
वहां हनुमान जी की आरती सुनी “
मैंने मन ही मन कहा -
बहूत खूब बरखुरदार
तुमने गांधी के व्रतों की
खूब धज्जियां उडाईं
वो थोडा रूककर बोले -
” मंडे को होता 2 अक्‍टूबर
तो मजा आ जाता
वीक-एंड मिलाकर
हम घर ही चले जाते
मां- बाप से मिल आते “ 

Thursday, September 27, 2012

ट्यूशन का टेंशन

मै गांव में पढ़ता था
ट्यूशन के नाम से मुझे चिढ़ थी
स्‍कूल में पढाई तब भी
कुछ खास नहीं होती थी
मगर कोई कहता था
मेरे पापा को -
ट्यूशन लगवा दो बच्‍चे को -  
तो लगता था मुझे
जैसे उसने गाली दे दी हो
मेरे दमखम को कम बता रहा हो ,  
पर अब बात कुछ और है
जितने सब्‍जेक्‍ट उतने ट्यूटर
स्‍वाध्‍याय की आदत नहीं रही
बस यही इक साल हे
मेरे बेटे के लिए
जिंदगी और मौत का सवाल है
कपूरथला के स्‍कूल में नाम लिखा है
पढ़ता कोटा की कोचिंग क्‍लास में हैं
इंजीनियर-डाक्‍टर बनाने की फैक्‍ट्रीयां
खुली हैं हर जगह
इधर से डालो बच्‍चे को उनकी सुरंग में
उधर से सीधे कॉलेज के गेट पर पहुचेगा
जो न जाने कैसे
उग आये है
कुकुरमुत्‍ते की तरह
गली ,  नुक्‍क़ड और सड़कों पर
साइबर-कुलीयों की फौज
तैयार करने के लिए  
सब दौड़े जा रहे है ,
कम्‍पटीशन का दौर है
कहीं पीछे न छूट जायें
चूहा बनने की रेस में
अपनी पोस्टिंग
दिल्‍ली करवाने के लिए
और
रूकवाने के लिए
मैने क्‍या और कैसे 
पापड़ नहीं बेले
बच्‍चों की खातिर ।