Sunday, September 20, 2015














मैं कोयल हो मैं कौआ हूं 

हम दोनों एकसे पाखी हैं 
तुम कूकू कूकू करती हो 
मैं कांव कांव करता हूं; 
हमको लड़वाने की कोशिश में 
जग वालों ने यह बात रची -
तुम मीठा सुर लगाती हो
 मैं कड़वी जुबां चलाता हूं  
हम दोनो काले काले है 
पर सच्चेे दिल वाले हैं; 
अपनी अपनी बोली हमारी 
पर एक हमारी भाषा है 
दुनिया में हो भाईचारा 
यही हमारी आशा है; 
भोर हुई उठ जाते हैं 
सांझ हुई सो जाते हैं 
एक पेड़ पर रह लेते
एक गगन में उडते हैं, 
चाहे नहीं दिमाग हमारे 
दिल तो हम भी रखते है 
इंसां से बेहतर हैं हम 
आपस में नहीं लड़ते हैं,
चोंच में जितना आ जाता 
उतना ही खा लेते हैं 
नहीं जमा करते कुछ भी
लोभ नहीं हम करते हैं; 
श्राद्ध में होती पूजा मेरी 
बाकी दिन कंकड़ पड़ते हैं 
कोयल दीदी तुम ही बतलाओ 
ये सब क्यूं वे करते हैं !