Friday, June 7, 2013

गर्मी का मौसम









पड़ती थी गर्मी तब भी
चलती थी तेज लू भी
आता था पसीना भी
पर नहीं होती थी हमें
इतनी बेचैनी मौसम में
हाथ का पंखा होता था
कच्‍ची मिटृटी का फर्श होता था
गोबर की लिपाई कर  लेते थे
बरामदे में दिन बीत जाता था
नल के नीचे बैठकर
जब मन किया नहा लिये
ताजा पानी से 
छिड़काव करके
रात को छत पर सो जाते थे
खाट बिछाकर  
मच्‍छर कम होते थे
खतरनाक भी नहीं थे
बीस मई को रिजल्‍ट आता था
फिर पूरे तीन महीने की छुटृटी  
कोई होमवर्क नहीं मिलता था
हम नानी के घर चले जाते थे
टेमपरेचर देखने के लिये
घर में टीवी नहीं था
रिश्‍तों में गरमाहट जो होती थी
मौसम की गर्मी सहन हो जाती थी
घड़े का पानी पी लिया करते थे
जब ज्‍यादा गरमी पड़ती थी तो
कभी- कभार
मां बना दिया करती थी
कच्‍ची लस्‍सी और शिकंजी भी ।