Thursday, September 27, 2012

ट्यूशन का टेंशन

मै गांव में पढ़ता था
ट्यूशन के नाम से मुझे चिढ़ थी
स्‍कूल में पढाई तब भी
कुछ खास नहीं होती थी
मगर कोई कहता था
मेरे पापा को -
ट्यूशन लगवा दो बच्‍चे को -  
तो लगता था मुझे
जैसे उसने गाली दे दी हो
मेरे दमखम को कम बता रहा हो ,  
पर अब बात कुछ और है
जितने सब्‍जेक्‍ट उतने ट्यूटर
स्‍वाध्‍याय की आदत नहीं रही
बस यही इक साल हे
मेरे बेटे के लिए
जिंदगी और मौत का सवाल है
कपूरथला के स्‍कूल में नाम लिखा है
पढ़ता कोटा की कोचिंग क्‍लास में हैं
इंजीनियर-डाक्‍टर बनाने की फैक्‍ट्रीयां
खुली हैं हर जगह
इधर से डालो बच्‍चे को उनकी सुरंग में
उधर से सीधे कॉलेज के गेट पर पहुचेगा
जो न जाने कैसे
उग आये है
कुकुरमुत्‍ते की तरह
गली ,  नुक्‍क़ड और सड़कों पर
साइबर-कुलीयों की फौज
तैयार करने के लिए  
सब दौड़े जा रहे है ,
कम्‍पटीशन का दौर है
कहीं पीछे न छूट जायें
चूहा बनने की रेस में
अपनी पोस्टिंग
दिल्‍ली करवाने के लिए
और
रूकवाने के लिए
मैने क्‍या और कैसे 
पापड़ नहीं बेले
बच्‍चों की खातिर ।




Wednesday, September 26, 2012

दैनिक जीवन में गणित

इस विषय पर
मेरी बेटी को मिले
स्‍कूली प्रोजेक्‍ट की
तैयारी कराते हुए
नजर आये
मुझे कई व्‍यवहारिक उदाहरण
नाप- तोल की जिंदगी के
मसलन 
कब किससे मिलना हे
कितनी देर के लिए
किसको कितने की गिफ्ट देनी हे
कितने पैसे चढाने हैं आरती में
किसका फोन नम्‍बर नोट करना है
कब किसको फोन करना है
किसको नमस्‍ते कहना है
किसको सलाम कहना है
कितना पढ़ना है
कितना सोचना है
कितना काम करना है
कितने परसेन्‍ट ईमानदार रहना है ,
तिगड़म और जुगाड़ में माहिर
हम सीख गए हैं
अंकगणित और समीकरण की
जिंदगी जीना
बहुत समझदार हो गये है
उपयोगिता के मापदंड पर
समय और पैसे का संतुलन
बैठाना जान गए हैं
क्‍या फायदा होगा
कौन काम आयेगा !

Tuesday, September 25, 2012

छोटी दुकान मीठा पकवान

हल्‍दीराम की दुकान पर
रघ्‍घू जलेबी छानता है
जिसकी खुद की
मिठाई की दुकान थी कभी
उस कस्‍बे में
जहां का मैं रहने वाला हूं
उसकी छोटी-सी दुकान के बाहर
खडा छोटा बच्‍चा ही
चिल्‍ला-चिल्‍ला कर बुलाता रहता था
सड़क पर गुजरते हुए लोगों को
बाबू जी जलेबी खाओ अंदर आओ
वही उसका विज्ञापन था ,
ज्‍यादा पैसा कमाने
वह इस शहर चला आ आया
जहां उसने पहले खोमचा लगाया
फिर खाक छानी
कई जगह और कई तरह की
अंत में अपने हुनर को
भुनाने की कोशिश में
मालिक से कारीगर बन गया ।

मैं पटरी से खरीदता हूं
सब्‍जी , किताबें और शर्ट
छोटा मुझे सुंदर और अपना लगता है
बिग बाजार मे जाने से डर लगता है
वो कहते है
वहां खूब वैराइटी मिलंगीं
बेस्‍ट प्राइस पर मिलेगी
कम्‍प्‍यूटर की रसीद भी मिलेगी
पर जब भी मैं गया वहां
जो जरूरी नहीं था
वो भी खरीद लाया
वहां मोलभाव नहीं कर पाता
ट्राली में समान रखते हुए
कुछ अजीब सा लगता है,
हां ! मैं कस्‍बे का रहने वाला हूं
मेरी सोच कस्‍बाई हूं
पर मैं कसाई नहीं हूं
जो  पैकेट की सब्जियां
मॉल से खरीदकर
पड़ोस गांव के गाय-रूपी
सब्‍जी विक्रेताओं का
पेट काट दूं ।


Monday, September 24, 2012

बाजार का खेल

आम पेड़ पर लगते है
किसान  उन्‍हें उगाता हे
तोड़कर और पकाकर
कोल्‍ड स्‍टोरेज पहुंचाता है
जिसे बेच कर
उसे पैसे मिलते हैं
इसलिए प्रधानमंत्री सही कहते हैं -
पैसे पेड़ पर नहीं उगते ,  
पैसे मंडी मे बनते हैं
जहां : आढ़ती और दलाल
देशी या विदेशी : सब
मिलकर चूसते है
आम आदमी का खून
जो सचमुच बहुत मीठा है
दशहरी आम की तरह  ,
उन्‍हें मतलब है सिर्फ
आम खरीदने और बेचने से
कैसे उगते हैं आम
उन्‍हें उससे क्‍या लेना देना
बस आमदनी बढानी है अपनी ,
आम लोकल फल है हमारा
उसे ग्‍लोबल बनाने के लिए
आर्थिक  सुधारों के तहत
बुला रही है सरकार
बाइज्‍जत
विदेशी कंपनियों को
जो सिखलायेंगीं हमें
कैसे उगायें -
बिना गुठली का आम
नमकीन फ्लेवर का आम
चौकोर शेप वाला आम
खास वेरायटी का आम
चिपका कर अपना  नाम
रखेंगे वो प्रीमियम दाम
नहीं खा पायेगा हर कोई
पर हो कोई भी सीजन
मॉल में मिलेगा आम
आम का अचार और आम की चटनी
अब मल्‍टीनेशनल कम्‍पनियां बनायेंगीं
उनके पास टेक्‍नालॉजी है
वो आम की चॉकलेट भी बना सकती हे ।
मारकाट मचेगी अब
रिटेल मार्केट में
आम आदमी के पक्ष में
कोई खड़ा नजर नहीं आता ,  
कल रात
एफडीआई पर
एनडीटीवी की डिबेट मे
बॉटम-बार में
लगातार डिस्‍पले
किए जा रहे
कोकाकोला के
सपोर्ट स्‍कूल कैमपेन को
देखकर मुझे हो गया
पक्‍का यकीन कि
अपभोक्‍तावाद के इस दौर में  
सारे खास लोग
व्‍यापारियों की ओर झुके हैं ।









Friday, September 7, 2012

केबासी मतलब कौन बनेगा चूतिया

(1)
आज के सारे अखबारों  में
फुल पेज एड छपा है
वो भी कवर पेज पर
इतना बडा़ विज्ञापन तो
देश का प्रधानमंत्री मर जाए
तो भी न छपे ।

अरे बाप रे बाप !

साढ़े आठ बज गए
बच्‍चों !
जल्‍दी आ जाओ
किताबें पढ़ना छोड़ो
टीवी देखने बैठ आओ
खाना बाद में बनेगा
केबीसी शुरू हो रहा है
इसी में मन लगाओ
लग गया नम्‍बर तो
लाटरी खुल जायेगी
आपका भविष्‍य सुधारे के लिए
प्रोफेसर बच्‍चन आ रहे हैं ।


( 2 )
मम्‍मी !    
कौन बना करोड़पति   
हम तो बुद्धू बने
कल रात बैठकर
इडियट- बॉक्‍स के सामने
एक घंटा बरबाद किया शो में
एक घंटा शो की समीक्षा में
रात को नींद में भी
घूमती कुर्सी थी
आज के पेपर की तैयारी
ठीक से न हो पायी
पूरा यकीन है मुझो
वो जरूर बन जायेंगे
अरबपति
जो उड़ा रह है
मजाक
गांव के गरीबों का
स्‍लमडॉग मिलिनोयर बना के
आम आदमी के ख्‍वाबों का
केबीसी दिखा के  
रियलटी से दूर
अपनी फिल्‍मी पापुलरटी का
भरपूर फायदा उठा रहे हैं।

( 3 )

कोई स्‍टोरी नही
सेट का खर्चा नहीं
आसान और हल्‍का -फुल्‍का शो
किसी को भी स्‍क्रीन पर दिखा दो
कुछ भी किसी से सवाल पूछ लो
हींग लगे न फिटकरी
रंग भी चोखा हो जाय
ये बिजनेस और कामर्स
खूब समझाते हैं
इन्‍हें किसी से परहेज नहीं
जो पैसा दे दे
उसका विज्ञापन कर देते है
जो रूपया फेंके
उसकी घरेलू पार्टी में नाच देते है
कुछ भी मुफ्त नहीं है
सब विज्ञापनों का खर्चा
ग्राहक की जेब से आता है ।

(4 )

मेरा सुझाव है
स्‍कूल-टाइम पर
प्रसारित होना चाहिए
केबीसी का शो
ताकि एक टीचर का
खर्चा बच सके
पर फिर
प्राइम टाइम के स्‍लॉट मे
मिलने वाले स्‍पांसर
कहां से आयेंगे  ?
सब परिवार वाले बैठ जाते हैं देखने
किसी सवाल का जवाब ऐसे देते है
मानो इन्‍हीं को मिलने वाली हो रकम
वैसे ही जैसे क्रिकेट का
मैच देखते वक्‍त
सोफे पर बैठे ही
छक्‍का लगाते हैं ।

(5)

कब से बन गए
अमिताभ क्विज मास्‍टर
आमिर खान समाजसेवी
संजय दत्‍त बापू के चेले
इनका कोई वास्‍ता नहीं
ये केवल पैसे के सगे हैं
बुढापे मे इश्किया फिल्‍म बनाते है
रोज नया स्‍वांग रचाते हैं
ये जुआरी है  -   ये बिकाऊ है ।

( 6)

मेरे दिमाग में नया आइडिया है
इन बहुरूपियों पर
कोई सीरियल बनाया जाये
पर कौन करेगा स्‍पांसर उसे
किस चैनल पर
इसलिए
बस लिखकर
ओपन स्‍पेस पर
( कोई अखबार छापेगा भी नहीं )
अपनी भड़ास निकाल रहा हूं
उन भांडों के खिलाफ
जो बेवकूफ बनाने पर तुले हैं
भोली-भली जनता को ।