देखकर अपनी आंखों से
सड़क पर उमड़े
जनसैलाब को
और सुनकर
क्रांति के स्वरों की गूंज
उठने लगा हे
मेरे भीतर भी ज्वार
उस मुहिम में
शामिल होने का
जिसे शुरू किया है
एक बूढे ने
छोड़कर खानापीना
व्यवस्था को बदलने की
जिद करते हुए ।
क्या और कब हासिल होगा
मुझे नहीं मालूम
बस :
उम्मीद जग गई है
आग सुलग गई है
मशाल जल गई है
मेरे दिल में :
यह जताने के लिए कि
मैं मुर्दा नहीं हूं
और
दे सकता हूं
कुछ तो
आहुति के तौर पर
इस सामाजिक महायज्ञ में ।
Wednesday, August 24, 2011
Thursday, August 4, 2011
दीपक तले अंधेरा
सुनकर खबर
अपने गांव के बगल में
बिजलीघर के बनने की
बहुत खुश हुए थे हम सब
इस उम्मीद में कि
जगमगाएगा
हमारा गांव भी ,
छिन गई हमसे
खेती की जमीन
बन गए हम मजदूर
नौकरी करने को मजबूर ,
बिजली पहले भी नहीं आती थी
बिजली आज भी नहीं आती है
पर पड़ोस में
बिजलीघर-कॉलोनी की
रोज रात की दिवाली
उदास कर देती है मुझे
लालटेन की रोशनी में
पढ़ने के
जख्म पर
नमक छिड़कते हुए ।
अपने गांव के बगल में
बिजलीघर के बनने की
बहुत खुश हुए थे हम सब
इस उम्मीद में कि
जगमगाएगा
हमारा गांव भी ,
छिन गई हमसे
खेती की जमीन
बन गए हम मजदूर
नौकरी करने को मजबूर ,
बिजली पहले भी नहीं आती थी
बिजली आज भी नहीं आती है
पर पड़ोस में
बिजलीघर-कॉलोनी की
रोज रात की दिवाली
उदास कर देती है मुझे
लालटेन की रोशनी में
पढ़ने के
जख्म पर
नमक छिड़कते हुए ।
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