कहते हैं
उनके अनंत हाथ थे
जिनसे उन्होने बनाई
अजब-गजब चीजें
मसलन
देवी- देवताओं के महल
इन्द्रपुरी और यमपुरी
रथ और पुष्पक विमान
त्रिशूल और सुदर्शन चक्र
और तो और
सोने की लंका भी ,
सच हो या न हो
पर करते हैं पूजा जब
इतने बड़े कार्यों को
करने वाले कारीगर की
तो हम अपना काम
क्यूं बंद कर देते है
औजारों की पूजा से
जश्न मनाते हुए
” कर्म ही पूजा “ - की जगह
सिर्फ पूजा ही कर्म बन जाता है
गुणगान करते हुए
देने वाले देवताओं के
लगे रहते हैं खुद
पैसा बटोरने में,
लुहार-कुम्हार-सुनार-बढ़ई को
उनका वंशज तो मानते हैं
पर कोई उनके काम की
सच्ची कद्र नहीं करता
इसीलिए तो सभी
अपने बच्चों को
दिमागी नौकरी में
भेजने के लिए
जुटे-पिटे रहते है
हकीकत जानने के बावजूद
पुरानी-मनगढ़त बातों की
भावनाओं की रौ मे
हम बहे चले जाते हैं
परम्परा- संस्कृति की
दुहाई देते हुए
मन तो बहल जाता हे
पर पौराणिक ग्रंथियां
कुछ और जटिल
होती जाती हैं
हर बीतते पल के साथ ।
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