Sunday, October 24, 2021

Kadwa chauth

 करवा चौथ के चार जवाब


जब बेटी दो साल की थी तो बाप चल बसा। कुछ समय बाद मां ने दूसरी शादी कर ली जिससे उसे एक बेटा पैदा हुआ। बेटी मां के नये पति को अंकल कहकर बुलाती है जो उससे सौतेला बर्ताव करता है। इसकी वजह से घर में अक्सर तनाव रहता है। आज के व्रत पर सबने बातचीत की।


बेटा : यह व्रत किसके लिए रखती हो ?

तुम्हारे पापा के लिये।

बेटी : यह व्रत किसके लिये रख रही हो ?

तुम्हारे पापा के लिये।

पति : यह व्रत किसके लिये रखा है ? 

तुम्हारे लिये।


उस मां का एक दोस्त है जिससे उसने एक बार (शायद यूं ही..) कहा था -  " यार, तुम कहाँ थे उस वक़्त....तुमने बहुत देर कर दी। पहले मिले होते तो मैं तुम्हें ज़िन्दगी का हमसफर बना लेती। " जब उस दोस्त ने आज पूछा :  यह व्रत किसके लिये रख रही हो ? तो वह बोली : " तुम्हारे लिये। "


परम्परा और दुनियादारी को निभाने के चक्कर में सबको (भगवान समेत) खुश रखने की कोशिश  करती है सिवाय अपने।

Wednesday, October 13, 2021

कंजक पूजा

 खुशामद और मिन्नत हो रही थी- 

 ‘ हमारे घर भी आ जाना बिटिया 

 सुबह थोड़ा सा वक्त निकालकर '

आ गई वो नौ सहेलियों को लेकर 

कई घरों से भोग लगाकर आईं

झुग्गीबस्ती में रहने वाली 

उन बच्चियों ने 

सिर्फ एक-दो पूरियां ही खाई 

बाकी पैक कर लीं घर के लिए 

शायद : शाम और कल के लिए 

विदा हो गईं कंजकें 

थाली और पैसे लेकर, 

देवियों की पूजा भी हो गई 

नौरातों के व्रत भी पूरे हो गए 

कल उनमें से कोई बच्ची  

सड़क पर हमें मिल जाये और 

हाथ जोड़कर रामराम करे तो 

शायद ही हममें से कोई

उसे जवाब दे !

Tuesday, February 16, 2021

मास्टर गोकुलचन्द के नाम

 याद आते हैं  मुझे

बचपन के वो दिन 

जब तख्‍ती-बुदक्का लेकर

कंधे पर भारी बस्‍ता ढोकर

मैं जाया करता था 

मंदिर वाले स्‍कूल में 

जिसे उस वक्‍त

विद्या-मंदिर नहीं कहा जाता था 

और न ही उसमें पढ़ाने वाले 

बूढ़े मास्‍टर गोकुलचन्‍द को 

सर या टीचर,

उनकी आंखें पत्‍थर की थीं 

हाथ में छड़ी रहती थी 

धोती पहनते थे गंदी-सी 

आवाज कड़क थी 

गणित उनके लिए खेल था 

बच्‍चे उनका जीवन थे 

और वह चबूतरा ही 

उनकी कुर्सी थी 

जिस पर बैठ 

वह पहाड़े याद कराते थे,

बच्‍चों से घिरे 

उन्‍हें डॉंटते-पीटते 

मुर्गा बनाते, गरियाते-झल्‍लाते 

फिर भी बार-बार समझाते ,

सॉंस चलती थी तेज 

पर लगे रहते पढ़ाने में 

दोपहर तक बिन खाये 

घंटी भी खुद ही बजाते थे 

सभी कक्षाओं को 

अकेले पढ़ाते थे 

स्‍कूल जब बंद हो जाता 

तो कोई खाना दे जाता 

खाकर और कुँए से पानी पीकर 

नीम के पेड़ तले

सुस्‍ताने के लिए 

जमीन पर ही 

पसर जाते थे, 

शाम को टहल आते थे 

बाजार की ओर 

किसी बच्‍चे का दुकानदार बाप 

मास्‍टर जी को बुलाकर 

चाय-हुक्‍का पिला देता 

घूम-फिर वे फिर आ जाते 

मंदिर में 

जहॉं थे वे खुद ही पूज्‍य और पुजारी

सिखाते बच्चों को सबक 

जिंदगी का 

वे मेरे प्रथम टीचर थे :

मास्‍टर गोकुलचन्‍द: 

सोई गॉंव के जाग्रत पुरूष।

Monday, February 15, 2021

फरवरी का आशिकाना हफ्ता

 फरवरी का आशिकाना हफ्ता 


गिफ्ट की दुकान से खरीदा हुआ  

प्‍लास्टिक का गुलाबी फूल 

बसंती के जूड़े़ में लगाकर  

चाकलेट देते हुये बोला भालू

चुंबन- आलिंगन की अम्‍मीद में

“ओ ! माई वेलेंटाइन,आई लव यू“

मिला जवाब करारा-सा बसंती से 

“अरे, मेंरे इडियट और मॉडर्न लालू !

इससे अच्‍छा तो ले आते 

सब्‍जी मंडी से  

फूलगोभी और दो किलो आलू ! “