दिसम्बर के आते ही
ठंड तेज होने लगती है
जख्म हरे हो जाते हैं
चाहे संयोग ही हो
बीस बरस पहले
संविधान के निर्माता की
पुण्य-तिथि पर ही
घर्मनिरपेक्षता को भूलकर
सरकारी तंत्र ने बखूबी
दंगाइयों का साथ दिया
मस्जिद को तोड़ने में
वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता
तारीख , साल जगह का
चौरासी - बानवे या 2002
दिल्ली, अयोध्या या गोघरा
सरकारों ने धोखा ही दिया है
किये वायदों को न निभाकर
जिम्मेदारी से मुंह मोड़कर
लोगों का यकीन तोड़कर ;
मुसलमान या ईसाई
नहीं बन सकते सब
न ही सबको हिन्दू
बनाया जा सकता है
रंगबिरंगे फूलों से ही
बगीचा सुंदर बनता है ।
सार्थक रचना ....
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