Thursday, November 29, 2012

आम के नाम - गुठली के दाम

आम चूसने वाले खास लोग
अक्‍सर उन्‍हें गिनते नहीं हैं
आम का वो अचार बनाते हैं
आदमी को लाचार बनाते हैं ,
अब दीवाने हैं अचानक सब -  
आम की फिक्र करते हुये
देते हैं वोट के लिए नोट
बुलाते हैं उसे आप कहकर
दाम बढ़ रहे है आम के
महगाई के गर्म बाजार में -  
हवा के रूख को देखकर
यारो ,  लगता है मुझको
आम चुनाव का मौसम
कुछ नजदीक आ रहा है !

Monday, November 19, 2012

राम नाम सत्‍य है

देश के सबसे बड़े शहर बम्‍बई में
उसका जनाजा निकला
जिसमें शामिल हुए लाखों लोग
महानगरी के तीन बड़े बंदर भी -  
फिल्‍म , बिजनेस और पालिटिक्‍स के ,   
वह वाकई बहुत पॉपुलर था
उसे नकारा बिल्‍कुल नहीं जा सकता
कार्टून से गुदगुदाता होगा कभी
पर जब से मैंने उसे पढ़ा-सुना
वह कलम से तलवार और बाण चलाता था
वाणी से बस जहर और आग उगलता था
हमेशा कड़वाहट भरी तीखी बातें बोलता था
हिटलर उसका रोल मॉडल था
सब को डराता था , खुद नहीं डरता था
अपनी बनाई सेना को
कमांडर की तरह
कत्‍लेआम के लिए हुक्‍म देता था
हिंसा के लिए भड़काता और उकसाता था
चाहें आतंकवादी न कहें हम उसे
वह नहीं था अलग उस प्रजाति से
जिसमें रखेगा इतिहास
भिंडरावाला, ओसामा या जार्जबुश को ,
क्षेत्रीयवाद का हिमायती था
वह रखता था दिल में
हिंदुस्‍तान से ऊपर हिन्‍दू को
राष्‍ट्र से ऊपर महाराष्‍ट्र को
पाकिस्‍तान को पड़ोसी नहीं
भारत का दुशमन मानता था,
उसकी नजर छोटी थी
वह संस्‍कृति की दुहाई देता था
पर दलितों का घोर विरोधी था
नरक कौन जाता हे मरने के बाद
मैं यह तो नहीं जानता ठीक से
पर जो स्‍वर्ग भोग चुका हो धरती पर
उसे अब मै स्‍वर्गवासी नहीं कह सकता
खूब शान-शौकत से रहता था
वाइन, बीयर और सिगार की चुस्कियां लेते हुए
रिमोट से सरकार चलाता था
वह किंगमेकर-बिगबॉस- डॉन था
अहंकारी था रावण की तरह
पर वह कट्टर रामभक्‍त था
उसे किसी की परवाह नहीं थी
खुद को कानून से ऊपर मानता था
वह बकैत था , वह जुनूनी था , वह अराजकतावादी था !
किसी की मौत पर रोने में कोई हर्ज नहीं है
पर मीडिया जब उसे शेर बनाने में लगा हो
तो सिक्‍के का दूसरा पहलू रखना
मैं अपना फर्ज समझता हूं
उसे राजकीय सम्‍मान क्‍यूं दिया गया ?
जिसने संविधान की जमकर धज्जियां उड़ाईं
जिसने समाज में दहशत और नफरत फैलाई
जिसने कोर्ट और पुलिस का मजाक बनाया
तर्जनी दिखाकर सबको धमकाया-सहमाया
मैं भली-भांति जानता हूं यह शिष्‍टाचार कि
किसी की विदाई पर उसकी तारीफ ही करनी चाहिए
पर क्‍या करूं -   मुझे रात भर परेशान किया
उस भगवाधारी प्रेत ने
जो अपनी अजीब विकारधारा लेकर
छाया रहा समाज में किसी साये की तरह
वह खुद तो अपनी शर्तों पर जीता था
पर दूसरों के जीने के लिये शर्तें रखता था
उसने कभी नहीं लिखा-कहा
गरीबी- महंगाई- भ्रष्‍टाचार के खिलाफ
या महाराष्‍ट्र के किसानों की खुदकुशी के बारे में
वह तो पाकिस्‍तान-वेलेंटाइन-गैरमराठी जैसे  
बड़े मुद्दों में उलझा रहा
सियासत का नया मॉडल रच गया
नफरत का जो बीज लगा गया
क्रिक्रेट की पिच खोदकर
उसको हमारी चुप्‍पी से
फसल उगलने में मदद मिलेगी
इसलिए मुझे लिखना जरूरी लगा
इसे श्रद्धांजलि समझो या न समझो
उसकी आत्‍मा को भगवान शांति दें
कैडर को सदभाव के लिये दिशा दे ।

Monday, November 12, 2012

कुदरत का कारखाना

कहते हैं
उनके अनंत हाथ थे
जिनसे उन्‍होने बनाई
अजब-गजब चीजें
मसलन
देवी- देवताओं के महल
इन्‍द्रपुरी  और  यमपुरी
रथ और पुष्‍पक विमान
त्रिशूल और सुदर्शन चक्र
और तो और
सोने की लंका भी ,
सच हो या न हो
पर करते हैं पूजा जब
इतने बड़े कार्यों को
करने वाले कारीगर की
तो हम अपना काम
क्‍यूं बंद कर देते है
औजारों की पूजा से
जश्‍न मनाते हुए
कर्म ही पूजा “ -  की जगह
सिर्फ पूजा ही कर्म बन जाता है
गुणगान करते हुए
देने वाले देवताओं के
लगे रहते हैं खुद
पैसा बटोरने में,  
लुहार-कुम्‍हार-सुनार-बढ़ई को
उनका वंशज तो मानते हैं
पर कोई उनके काम की
सच्‍ची कद्र नहीं करता
इसीलिए तो सभी
अपने बच्‍चों को
दिमागी नौकरी में
भेजने के लिए 
जुटे-पिटे रहते है
हकीकत जानने के बावजूद
पुरानी-मनगढ़त बातों की
भावनाओं की रौ मे
हम बहे चले जाते हैं
परम्‍परा- संस्‍कृति की
दुहाई देते हुए
मन तो बहल जाता हे
पर पौराणिक ग्रंथियां
कुछ और जटिल
होती जाती हैं
हर बीतते पल के साथ ।

अंघेरे से उजाले की ओर

कैसे कहूं मैं दीवाली आई है
चाइनीज बल्‍बों की झालर है
पैकेट में ड्राईफ्रूट- मिठाई है
घर में नहीं बनते पकवान
कैफे से काफी मंगवाई है
बाजार में बहुत मंहगाई है ,
सब आसान है
तेल निकल जाता था
मिट्टी के दीयों मे
घी डालते - बाती लगाते
अब स्विच ऑन करते ही
जगमगाने लगाती है मुंडेर
कितनी रातें जलाओ
कोई मेहनत नहीं ,
नाजुक फुलझड़ी की  
चमचमाती रोशनी
कहीं दब गई है
ताकतवर बमों की आवाज में ,  
न वो थाल में सजे हुये खील-बताशे
न ही खांड के वो मीठे-प्‍यारे खिलौने
न चाक से लाया दीपक न रूई की बाती
न कोई खास खुशी न ही नैनों में ज्‍योति ,  
ऑफिस में छुट्टी का माहौल देखकर
पटाखों की कनफोड़ू आवाज सुनकर
हैवी डिस्‍काउंट के विज्ञापन पढ़कर
जुये और शराब की खबरें सुनकर
गिफ्टें ढोते हुए लोगों को देखकर
लगता है मुझको भी ,  दोस्‍तों
अब दीवाली आ ही गई है
किसी ने मुझसे पूछा - 
दो दीवाली क्‍यूं मनाते है !
मैंने सोचा -  ठीक ही तो है
छोटी दीवाली भारत की आम जनता के लिए
बड़ी दीवाली इंडिया के बिग  बॉसेज के लिए
अमीर और व्‍यापारी की ही सच्‍ची दीवाली है
गरीब और ग्राहक का तो निकलता दिवाला है ।
भाषा बदल रही है -  शैली बदल रही है
हम प्‍लास्टिक और कम्‍प्‍यूटर के युग में
आगे निकल चुके हैं ; रा1 से रैम की ओर ।

Tuesday, November 6, 2012

फेस्‍टीवल ऑफ करप्‍शन

हमारे तीन राष्‍ट्रीय पर्व हैं -    
15 अगस्‍त, 26 जनवरी व 2 अक्‍टूबर
पर इन सबसे महत्‍वपूर्ण है
दीपावली का त्‍यौहार
जब मिलती हैं
पापा को
ढेर सारी गिफ्ट उनसे
जिनसे उनका रिश्‍ता है
ऑफिसी और कुर्सीला ,
राम या रावण
कोई भी जीते
अपनी बला से
हमें तो मतलब
सिर्फ मिठाई से ,
इस बार आ गये
कुछ ज्‍यादा ही डब्‍बे
अम्‍मा ने कहा
जा बेटा
थोड़ा दे आ
उस बुढ्ढे बाबा को भी
जो मांगता रहता है
अल्‍लाह के नाम पर
उससे जयश्रीराम
जरूर बुलवाना
हो सकता है
राम जी इसी से
खुश हो जायें
हमारी जिंदगी में
रौशनी हो जाये।

इरोम चानू शर्मिला को सलाम करते हुए

बैठी है वो अनशन पर
पिछले बारह  सालों से
खिलाफत में
उस काले कानून के
जिसकी आड़ में
दुनिया के सबसे बड़े
लोकतंत्र की सरकार
करा देती है कत्‍ल
स्‍वदेशी सेना से  
अपने ही लोगों का
बहरे कान सिर्फ सुनते ही नहीं
उन पर पर जूं भी नहीं रेंगती
हे बापू ।
उन्‍हें माफ करना
वो नहीं जानते
वो क्‍या कर रहें हैं
वो बेशर्म और चालू हैं
फोटो लगाकर आपकी
बस करेंसी चला रहें हैं
सत्‍य और अहिंसा का
जमकर मजाक उड़ा रहे हैं ,  
एक और विनती है  
हिम्‍मत देना अपनी
इरोम जैसे आम लोगों को
जो संघर्षरत हैं
अंधेरे के खिलाफ
दीप जलाने को
अमन व भाईचारे का ।