Tuesday, October 30, 2012

मोटीवेशन

पुचकारती हुई
छोटी बच्‍ची को
मां बोली - 
गुडि़या रानी
दूध का गिलास
जल्‍दी फिनिश कर  दो  
फिर डोरेमन देख लेना ;
दसवीं क्‍लास में
पढ़ रहे बेटे को
पापा बोले - 
गुड्डू राजा  
सिर्फ 2 घंटे पढ़ लो
फिर खेलने चले जाना ;
कुछ नहीं बोलते
पापा को उनके
सुपरवाइजर -   
वो खुद ही 2 घंटे
काम करने के बाद
फ्री हो जाते हैं
पूरी तनख्‍वाह के अलावा
उतना ही इंसेटिव पाते हैं
किक्रेट खेल नहीं सकते
इसलिए दिन भर
ताश खेलते हैं
दूध पीने की उम्र नहीं रही
इसलिए डटकर
सोमरस पीते हैं ;
खूब सोते है
सुनते हुये मोबाइल पर
शीला- मुन्‍नी के सांग्‍स
ऐश , मौज और मस्‍ती है
सरकारी नौकरी सस्‍ती है ,
प्रेरित करने के लिए
हमने बनाई थी  
जो स्‍कीम
अब करने लगी है 
वही हमें पीडि़त ।

Friday, October 26, 2012

विडम्‍बना

" गौ - हत्‍या बंद हो   के नारे लगाने वाले धार्मिक लोग
भैसहत्‍या बंद करने की बात क्‍यूं नहीं करते हैं
गंगा की गंदगी को मु्द्दा बनाने वाले  आंदोलनकारी
नर्मदा पर बांध बनता देख आखिर चुप क्‍यूं रहते हैं
अंबानी-टाटा-बिरला रोज सबको दिन- दहाड़े लूटते  हैं
हम सिर्फ वालमार्ट से ही सहमे और डरे रहते हैं
काले धन की चर्चाओं में उलझे हुए देशभक्‍त लोग   
मंदिर , गुरूद्वारे व आश्रमों मे क्‍यूं गुप्‍तदान करते हैं
सरकार के भ्रष्‍टाचार को हम लाख कोसते रहें , दोस्‍तो
कारपोरेट सेक्‍टर के करप्‍शन को भी हम ही पोसते  हैं 

Thursday, October 25, 2012

मैं क्‍या करूं ?


सबर करो भई सबर करो
औरों की कम फिकर करो
वक्‍त पे अपना काम करो
खुद को ही तुम ठीक करो
सड़क का कूडा़ साफ करो
जो कहते हो वो ही करो
इंसाफ के लिए जरूर लड़ो
पर धीमी-मीठी बात करो
बच्‍चों को जो सिखलाते हो
खुद तो उस पर अमल करो
दिल की तुम आवाज सुनो
सही लगे मन को , वो करो
कुछ भी साथ नहीं है जाता
दौलत मत तुम जमा करो
थोड़ा तो तुम रब से डरो
जीते जी अंदर से न मरो
नये समाज का सृजन करो

Friday, October 19, 2012

उसकी कमीज मेरी कमीज से काली है

 बज गया ढोल
खुल गई पोल
कुश्‍ती का अखाड़ा
एक - दूजे को पछाड़ा
ये भी गंदे
वे भी गंदे
कर के उन्‍हें नंगे
हमने सनसनी फैलाई
अपनी फोटो खिंचवाई
कीचड़ उछाला
होगा उजाला
सट्टा लगाकर
सत्‍ता चलाई
बजाओ ताली
दो सबको गाली
कुछ तो हो रहा है
कोई तो रो रहा है
न बड़ा है न बच्‍चा
कोई न इससे बचा
खेल ही ऐसा
उलझाये पैसा
कुंआ और खाई
जायें कहां भाई
कैसे लडें ,  कैसे मरें
आख्रिर हम क्‍या करें
सब हैं गोलमोल
मनवा ,
तू तो  बस
अपनी जय बोल
अपनी जय बोल ।


Wednesday, October 17, 2012

दुर्बल को न सताइए

सरकार टैक्‍स वसूलती है
आम आदमी को
पानी-बिजली जैसी
बेसिक सहूलियत देने के लिए
एनजीओ जमा करते हैं
चंदा और फंड
बेसहारा लोगों की
मदद करने के लिए
पब्लिक के पैसे लगाकर
प्राइवेट कम्‍पनी सड़क बनाती हे
उसे टोल टैक्‍स से चलाती है
पब्लिक की जेब काटकर  
सब खिलवाड़ करते हैं
हां , गरीब खिलौना है
कोई उसे कस्‍टोमर बनाता है
कोई उसे क्‍लायेंट बनाता है
सब अपनी सेवा कर रहे हैं
उसके नाम पर
सरकार स्‍कीम चलाती है
कंपनी सीएसआर विंग खोलती है
डाकू और कसाई हैं
सारे हुक्‍मरान - 
चाहे पूरे सरकारी  
चाहे आधे सरकारी
चाहे गैर सरकारी -
वे ताकतवर हैं
वे मजाक उड़ाते है
गरीब का ,  गरीबी का
एसी में बैठकर
लंबी बहसें करते हुए
सुटृटा और पैग लगाकर
विकलांगता का प्रतिशत
तय करने के लिए ।


Wednesday, October 10, 2012

राष्‍ट्रीय जानवर

लॉमी है स्‍मार्ट
वह चापलूसी कर सकता है
उसके पास मीठी बाते है
बहाने और दलीलें हैं
अंगूर का लालची है
न लपक पाने पर
उन्‍हें खटृटा कहता है 
वह चालाक और शातिर है
शतरंज का खूब माहिर है
आगे की चालों से सतर्क
अपने कागजात ठीक रखता है
फाइल का पूरा पेट भरता है
बढि़या और ज्‍यादा अंग्रेजी लिखकर
सीधी बात को टेढ़ी कर सकता है
गलत को सही बना दिखा सकता है
उसकी नजर बस रोटी पर टिकी रहती है
पेट के लिए वह जमीर  बेच सकता है
उसको अपना काम निकालना आता है
जरूरत के मुताबिक वह
कुछ भी बन सकता है
किसी की खाल ओढ़कर
किसी को भी अपना बना सकता है
टॉमी है -  अलर्ट और वफादार
किंतु वह सिर्फ भौंकता है -  गुर्राता है
कभी - कभार ही काटता हे
इसलिए लॉमी का बोलबाला है
आज समाज में हर तरफ
नौकरी , बिजनेस और पॉलिटिक्‍स मे
सही कहा जॉर्ज ऑरवेल ने  -   
सारे जानवर बराबर हैं
पर कुछ जानवर
औरों से ज्‍यादा बराबर हैं   -  
लोमड़ी किसी देवता का वाहन नहीं
इसलिए यह धर्मनिरपेक्ष भी है
इसे ही होना ही चाहिए
राष्‍टीय और सामाजिक जानवर - 
जो मरे तो भी कहे
लो -  मरो ,   सब मरो   


Thursday, October 4, 2012

रामराज और फादर्स-डे

परसों था दो अक्‍टूबर
राष्‍ट्रपिता गांधी जी की
जन्‍मतिथि पर राष्‍ट्रीय अवकाश
सारे सरकारी ऑफिस और स्‍कूल - कालेज बंद
इस दिन कहीं कोई झंडा नहीं फहराया जाता
न ही है यह ईद- दीपावली-क्रिसमस
जैसा कोई त्‍यौहार
जिसे चाहे सब लोग न मनाएं
किंतु उस धर्म-समुदाय विशेष के
मानने वाले तो मना लेते हैं ,
जब मैंने पूछा अपने सहकर्मी से -
“ कैसे बितायी छुटृटी इस साल
बापू - शास्‍त्री के जन्‍म दिन की ? “
तो वे बोले -
“ सुबह खूब देर तक सोये
टी-शर्ट और जींस पहनकर
बाजार गए चाउमीन खाने
दोपहर बाद टीवी पर एक्‍शन मूवी देखी
गपशप मारी
नौकर को गरिआया
शाम को मंदिर टहल आए
वहां हनुमान जी की आरती सुनी “
मैंने मन ही मन कहा -
बहूत खूब बरखुरदार
तुमने गांधी के व्रतों की
खूब धज्जियां उडाईं
वो थोडा रूककर बोले -
” मंडे को होता 2 अक्‍टूबर
तो मजा आ जाता
वीक-एंड मिलाकर
हम घर ही चले जाते
मां- बाप से मिल आते “