Saturday, May 1, 2010

परछाईयां

आज कल इंसा नजर आता नहीं
चलती-फिरती आती नजर परछाईयां
हाल क्‍या कैसे कहें - कहा जाता नहीं
खुद ही खुद के लिए पैदा करीं परेशानियां
खाने - पीने और जीने में वो हमेशा मस्‍त हैं
चूर मय के नशे में इस कदर हर वक्‍त हैं
कल्‍पना के लोक में लेते सदा अंगड़ाईयां
चलती फिरती……………..
छोड़ राह नेकी की , बदी पर चले
फिर कहो कैसे उन्‍हें मंजिल मिले
जिंदगी में आ गईं अनगिनत बुराइंयां
चलती फिरती……………..
अपनी मर्जी छोड़ उसकी पर चलो
फिर जिंदगी में कुछ हासिल भी हो
करता है वो सब पर मेहरबानियां
चलती फिरती……………..
दूर हो जाएंगी सब परेशानियां
( Poem of a friend : Dev)

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