पहले लूटा लोगों को
चीजें मँहगी बेचकर
फिर बनवाए मंदिर
उसी डकैती के
इक छोटे से हिस्से से
जड़ते हुए अपने
नाम के पत्थर
द्वार पर
जिन्हें देखकर लगता है
मानो भगवान को
कैद कर लिया हो
और जमानत के लिए उसे
पत्थर पर खुदी राशि
जमा कराने का आदेश हो ।
लोग जो लुट कर
बन चुके थे गरीब
अपने मन का समझाने
या फिर पूर्वजन्मों का पाप काटने
अभी भी आते हैं मंदिर में
और उन दान-पत्थरों को पढ़कर
उन्हीं लुटेरों के पुण्य की
प्रशंसा करते हैं
थोड़ा पुण्य कमाने को
चंद सिक्के खुद भी
चढ़ा देते हैं
शीश नवाते
उस मूर्ति के सम्मुख
जिसे बनाया होगा शायद
किसी वैसे ही
गरीब व शोषित मजदूर ने।
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सस्ता किसने बेचा है, उसका नाम बता दो... आपत्ति किस चीज पर है, मन्दिर बनाने पर या मंहगा बेचने पर... फिर भी कम से कम औरंगजेब की तरह लोगों को मारा काटा तो नहीं..
ReplyDeleteमंदिर बनवाने के पीछे किये गए बुरे कर्मों के प्रायश्चित की भावना ही काम करती है शायद...
ReplyDeleteनीरज
Apni loot ko chupane kee koshish hoti hai Birla jaise dwara mandir banwana. Yeh Gurudware aur anya sthalon par bhi utni hee lagu hai. kisi ko lutna uar dhokha dena uske katl karne se bada gunah hai. Dharm ke naam par vyapari seth se bhagwan ban rahe hein
ReplyDeleteकविता पढी; सटीक लगी। लिखते रहिये और अपने विचारों को फैलाइये ।
ReplyDeleteधन्यवाद,
स्वाति