Thursday, May 20, 2010

शुक्रिया

बस में आज
मैंने एक सुंदर लड़की को देखा
मुझे ईर्ष्‍या हुई उसे देख
उसके उतरने का स्टैंड आया
वह उठी :
उसके एक पैर था
हाथ में थी बैसाखी
मैंने परमपिता का शुक्रिया किया
मेरे दो पैर हैं - सही सलामत।

मैं दुकान पर गया
मिठाई खरीदने
ब्रिकी करने वाले लड़के ने
मुझसे की मीठी बातें
बोला –
'' मुझे बात करना अच्छा लगता है
मैं देख नहीं सकता न, इसलिए।''
मैंने परमपिता का शुक्रिया किया
मेरी दो ऑंखे हैं - सही सलामत।

मैं बाजार में चलता रहा
एक बच्चा मिला
जो था गुमसुम
हमउम्र बच्‍चों की भीड़ के बीच
जो खेल रहे थे, शोर मचाते
'' क्यूँ नहीं खेलते तुम उनके साथ ''
वह देखता रहा, कुछ न बोला
मुझे पता चला
वह सुन नहीं सकता
मैंने परमपिता का शुक्रिया किया
मेरे दो कान है - सही सलामत ।

हे ईश्वर !
सब कुछ बिल्कुल सही है :
दोनों पैर, दोनों ऑंखें, दोनों कान
और वह सब
जो मुझें याद नहीं रहता
तुम्हारा दिया हुआ
शिकायत क्या करू
और तुझसे क्या मांगू
तूने दिया है मुझे
हैसियत से ज्यादा
धन्यवाद तुझे कोटि-कोटि।

2 comments: