Wednesday, February 2, 2011

पशु-पक्षी और इंसान

कल झील के किनारे
घूमते हुए
बत्‍तखों को देख
मैं दार्शनिक हो गया :
क्‍या यही भोग योनियां हैं !
‘अपना दर्द किसी को बता नहीं सकते
अपने मन की किसी को कह नहीं सकते
भूख लगने पर मनपसंद खा नहीं सकते ‘

लोग तो बस आते हैं
घूमने-टहलने
पाप कार्न और आटे की गोलियां
डालकर चले जाते हैं ,
किसी ने कभी सोचा
उनका क्‍या खाने को जी चाहता है !

मोबाइल के कैमरे से
फोटो खींचकर
उनसे रिश्‍ता बनेगा क्‍या ?
जिनकी उम्र भी नहीं जानते हम
और न ही उनके नाम
बस कह देते हैं
पड़ोसी को :
‘ झील मे दस सुदर डक्‍स है
बच्‍चों को साथ लेकर आप भी देखने जाना ‘ !

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