Wednesday, March 9, 2011

रिश्‍तों का चक्‍कर

मैं चाहता हूँ उसको
जो किसी और को चाहती है
जिसको वह चाहती है
वो किसी और को चाहता है ,
जो मिलता है
वो हमें पसंद नहीं
जो पसंद है
वो हमें मिलता नहीं
और मिल भी जाये अगर
तो पसंद बदल जाती है ,
उम्‍मीदो व खुशफहमियों के
सहारे- किनारे
समझौते करते हुए
तलाश और भटकाव में
जिंदगी यूँ ही गुजर जाती है !

1 comment:

  1. अगर हमें अपने बारे में ये सब कहानी पता हो तो रि‍श्‍ते बेहतर हो सकते हैं।

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