मैं कौआ हूँ
आदिवासी , गरीब और अनपढ़
काला और कुरुप
मेरी आवाज कर्कश है
फिर भी मुझे पानी पीने का हक है
मुझ पर ही क्यूँ गढ़ी
तुमने घड़े और कंकड़ की कहानी ?
बिसलेरी मैं खरीद नहीं सकता
पेशाब मैं पी नहीं सकता
मुझे नहीं बोलना मीठा
मैं चोंच से लड़ूँगा
कांव – कांव के नारे लगाऊँगा
सवाल पूछूंगा चिल्ला-चिल्ला कर
घड़े में पानी कम क्यूँ था ?
तालाब कहां चले गए ?
पब्लिक-प्लेस में प्याऊ क्यूँ नहीं है ?
तुमने मेरे हिस्से का पानी हथिया लिया है
जल, जंगल और जमीन पर मेरा भी हक है
मैं भी प्राणी हूँ
मुझे भी प्यास लगती है
मुझे भी भूख लगती है !
तुम इकट्ठा करो पानी बैंक में
बहाओ उसे पार्क की अय्याशी में
और मैं लाचार ताकता रहूँ
घड़े की तरफ जिसमें
न तो पानी है
न ही पैसा है
घड़े को तुम्हारे सिर के ऊपर फोड़ दूँगा
पत्थर डाल-डाल कर ।
अगर मेरा एक साथी भी
मर गया प्यास से
तो तुम्हारा ऐसा घिराव करूंगा
नानी याद आ जाएगी
तुम्हें नोंच – नोंच कर खा जाऊँगा
तुम्हारा खून पी जाऊँगा !
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अगर मेरा एक साथी भी
ReplyDeleteमर गया प्यास से
तो तुम्हारा ऐसा घिराव करूंगा
नानी याद आ जाएगी
तुम्हें नोंच – नोंच कर खा जाऊँगा
तुम्हारा खून पी जाऊँगा !
wow !!!!!!!!
bahut khub
shkehar kumawat
बिसलेरी मैं खरीद नहीं सकता
ReplyDeleteपेशाब मैं पी नहीं सकता
मुझे नहीं बोलना मीठा
मैं चोंच से लड़ूँगा
कांव – कांव के नारे लगाऊँगा
सवाल पूछूंगा चिल्ला-चिल्ला कर
घड़े में पानी कम क्यूँ था ?
तालाब कहां चले गए ?
पब्लिक-प्लेस में प्याऊ क्यूँ नहीं है ?
....bilkul sahi.100% sahamat, jaayej, bebaak, katu satya......
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
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