Tuesday, April 6, 2010

बराबरी का रिश्‍ता

न मैं समंदर हूँ
न तुम दरिया
हम धाराए हैं.
समान होने की कोशिश में
समा तो नहीं पाते हम
इक दूसरे में
पर हकीकत का सामना
करने की बजाय
सपनों की खुशफहमी में
खुद को डाल देते हैं.
बेहतर पनपती है दोस्‍ती
जब हम मंजूर करते है
सखा को जैसा वो है
स्‍पेस देते हुए उसे
उड़ने के लिए
गगन में
समझ , संवेदना और सहयोग का
संगम जरूरी है
प्रेमसागर मे
डूब जाने के लिए.

4 comments:

  1. समझ , संवेदना और सहयोग का
    संगम जरूरी है
    प्रेमसागर मे
    डूब जाने के लिए.


    wow !!!!!!!!!!

    good

    bahut khub


    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. बेहतर पनपती है दोस्‍ती
    जब हम मंजूर करते है
    सखा को जैसा वो है
    स्‍पेस देते हुए उसे
    उड़ने के लिए
    गगन में....sachmuch sachha pyar/dosti aazaadi deta hai.

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया,
    बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
    पूरी कविता दिल को छू कर वही रहने की बात कह रही है जी,

    ReplyDelete