न मैं समंदर हूँ
न तुम दरिया
हम धाराए हैं.
समान होने की कोशिश में
समा तो नहीं पाते हम
इक दूसरे में
पर हकीकत का सामना
करने की बजाय
सपनों की खुशफहमी में
खुद को डाल देते हैं.
बेहतर पनपती है दोस्ती
जब हम मंजूर करते है
सखा को जैसा वो है
स्पेस देते हुए उसे
उड़ने के लिए
गगन में
समझ , संवेदना और सहयोग का
संगम जरूरी है
प्रेमसागर मे
डूब जाने के लिए.
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nice
ReplyDeleteसमझ , संवेदना और सहयोग का
ReplyDeleteसंगम जरूरी है
प्रेमसागर मे
डूब जाने के लिए.
wow !!!!!!!!!!
good
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बेहतर पनपती है दोस्ती
ReplyDeleteजब हम मंजूर करते है
सखा को जैसा वो है
स्पेस देते हुए उसे
उड़ने के लिए
गगन में....sachmuch sachha pyar/dosti aazaadi deta hai.
बहुत बढ़िया,
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
पूरी कविता दिल को छू कर वही रहने की बात कह रही है जी,