मैं नदी हूँ
प्रवाह मेरी प्रकृति है
धारा मेरी धारणा
मुक्ति मेरा मकसद ।
सागर में मैं खुद जाकर मिलती हूँ
पर तुम्हें किस ने हक दिया
मेरी राह में रोड़े अटकाने का
ऊंचे डैम बनाकर ।
तुम्हारे विकास की अंधेर मे
अंर्तनाद बन गया है क्रंदन
संबंध तो ठीक है
बांध मत बनाओ मुझ पर
मुझे निर्बाध बहने दो
कूड़ा-कचरा फेंककर
नाली मत बनाओ
मुझे जीने दो
दीन मत बनाओ
मुझे आजाद रहने दो
मुझे नदी ही रहने दो !
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बांध मत बनाओ मुझ पर
ReplyDeleteमुझे निर्बाध बहने दो
.....maarmik.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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