Tuesday, March 30, 2010

वक्‍त गुजरने के साथ

धीरे-धीरे
सब गलत ही होता है
बस कुछ बदल जाता है
बस कुछ भूल जाता है
पर घाव रिसता रहता है
अंदर-ही-अंदर
सड़ांध पैदा हो जाती है
ग्रं‍थियां हो जाती हैं
तनिक और जटिल.
वो दिलासे के लिए
कहते हैं अब भी
धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा
पर मैं जानता हूँ पक्‍की तरह
धीरे-धीरे सिर्फ घुन ही लगता है
अनाज को और समाज को भी
कुछ न करने से
कुछ न कहने से.

2 comments:

  1. "कुछ न करने से
    कुछ न कहने से" बहुत ही सार्थक कविता........"

    ReplyDelete
  2. धीरे-धीरे सिर्फ घुन ही लगता है
    अनाज को और समाज को भी
    कुछ न करने से
    कुछ न कहने से. ....सार्थक कविता

    ReplyDelete