धीरे-धीरे
सब गलत ही होता है
बस कुछ बदल जाता है
बस कुछ भूल जाता है
पर घाव रिसता रहता है
अंदर-ही-अंदर
सड़ांध पैदा हो जाती है
ग्रंथियां हो जाती हैं
तनिक और जटिल.
वो दिलासे के लिए
कहते हैं अब भी
धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा
पर मैं जानता हूँ पक्की तरह
धीरे-धीरे सिर्फ घुन ही लगता है
अनाज को और समाज को भी
कुछ न करने से
कुछ न कहने से.
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"कुछ न करने से
ReplyDeleteकुछ न कहने से" बहुत ही सार्थक कविता........"
धीरे-धीरे सिर्फ घुन ही लगता है
ReplyDeleteअनाज को और समाज को भी
कुछ न करने से
कुछ न कहने से. ....सार्थक कविता