Thursday, March 25, 2010

नया साल

खुशफहमी है
कलगीधारी घोड़े को
स्‍मार्ट होने की
बग्‍गी मे जुते हुए ,
श्‍वेतवर्णी कबूतर को
शांतिदूत होने की
गगन में उड़ते हुए
और पढ़े लिखे आदमी को
मालिक होने की
सरकारी नौकरी करते हुए
ज्‍यादा जरूरी है
ईंटों का बोझा
रात की पहरेदारी
और रोटी पकाना
जिसकी जिम्‍मेदारी सौंपी है
समझदार समाज ने
गधे, उल्‍लू और अनपढ़ औरतों को
मूर्ख की पदवी देते हुए
आओ साथियों !
1 जनवरी को
चंद जहीन लोगों के लिए छोड़कर
हम बहुजन
1 अप्रैल का उत्‍सव मनाएं ,
वही हमारा होली है
वही हमारी ईद है
आज हमारा दिन है
कल से तो फिर सहनी है
मंहगाई की मार
आर्थिक बजट का असर
हम पर ही पड़ेगा
.क्‍योंकि हम मूरख हैं
और तुम हरामखोर।

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