पड़ती थी गर्मी तब
भी
चलती थी तेज लू भी
आता था पसीना भी
पर नहीं होती थी हमें
इतनी बेचैनी मौसम
में
हाथ का पंखा होता था
कच्ची मिटृटी का फर्श होता था
गोबर की लिपाई कर लेते थे
बरामदे में दिन बीत
जाता था
नल के नीचे बैठकर
जब मन किया नहा लिये
ताजा पानी से
छिड़काव करके
रात को छत पर सो
जाते थे
खाट बिछाकर
मच्छर कम होते थे
खतरनाक भी नहीं थे
बीस मई को रिजल्ट
आता था
फिर पूरे तीन महीने
की छुटृटी
कोई होमवर्क नहीं
मिलता था
हम नानी के घर चले
जाते थे
टेमपरेचर देखने के
लिये
घर में टीवी नहीं था
रिश्तों में गरमाहट
जो होती थी
मौसम की गर्मी सहन
हो जाती थी
घड़े का पानी पी लिया
करते थे
जब ज्यादा गरमी
पड़ती थी तो
कभी- कभार
मां बना दिया करती
थी
कच्ची लस्सी और
शिकंजी भी ।
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