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जब पूछा मां ने
लंबे सफर पर जाते हुए - " रास्ते के लिए बांध लेती हूं
बीस परांठे और आलू की सब्जी " -
मैंने कह तो दिया -
रहने दो अब सब कुछ
रेडीमेड मिल जाता है -
पर मैंने सोचा
सच तो है यही है :
कोई तो बनाता ही होगा रोटी
कोई तो सिलता ही है कपड़े
कहीं तो कूटे जाते हैं मसाले
कोई तो कंकड़ बीनता है चावलों से
कोई पापड़ बेलता है - अचार डालता है
ताकि हमको मेहनत न करनी पड़े
मम्मी-दादियों के जमाने की ,
मशीन सब काम नहीं कर सकती
न ही इनसे करवाया जाता है
अक्सर मजदूर सस्ता मिल जाता है
आसमान से नहीं टपकतीं बाजार में
सुंदर पैकिंग वाली रेडीमेड चीजें ।
कोई तो बनाता ही है ...बस अपनी मेहनत नहीं लगती ।
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