Monday, November 12, 2012

कुदरत का कारखाना

कहते हैं
उनके अनंत हाथ थे
जिनसे उन्‍होने बनाई
अजब-गजब चीजें
मसलन
देवी- देवताओं के महल
इन्‍द्रपुरी  और  यमपुरी
रथ और पुष्‍पक विमान
त्रिशूल और सुदर्शन चक्र
और तो और
सोने की लंका भी ,
सच हो या न हो
पर करते हैं पूजा जब
इतने बड़े कार्यों को
करने वाले कारीगर की
तो हम अपना काम
क्‍यूं बंद कर देते है
औजारों की पूजा से
जश्‍न मनाते हुए
कर्म ही पूजा “ -  की जगह
सिर्फ पूजा ही कर्म बन जाता है
गुणगान करते हुए
देने वाले देवताओं के
लगे रहते हैं खुद
पैसा बटोरने में,  
लुहार-कुम्‍हार-सुनार-बढ़ई को
उनका वंशज तो मानते हैं
पर कोई उनके काम की
सच्‍ची कद्र नहीं करता
इसीलिए तो सभी
अपने बच्‍चों को
दिमागी नौकरी में
भेजने के लिए 
जुटे-पिटे रहते है
हकीकत जानने के बावजूद
पुरानी-मनगढ़त बातों की
भावनाओं की रौ मे
हम बहे चले जाते हैं
परम्‍परा- संस्‍कृति की
दुहाई देते हुए
मन तो बहल जाता हे
पर पौराणिक ग्रंथियां
कुछ और जटिल
होती जाती हैं
हर बीतते पल के साथ ।

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