Wednesday, July 7, 2010

जीवन-प्रभात

जा रही थी मैं
इक सुबह तड़के ही
अपनी छोटी बहन के साथ
टाइकांडो की प्रैक्टिस के लिए
कि अचानक
आ गिरा
हमारे सामने सड़क पर
इक घोंसला
अंडा फूटा
दिखी हमें इक नन्‍हीं जान,
आया दौड़ता हुआ
इक कुत्‍ता
हम सहम गए
न जाने उस निरीह पर
क्‍या बीती होगी उस वक्‍त
हमारी तो चीख निकल गई
मां अपने बच्‍चे को चांच में दबाकर
फुर्र हो गई ।
सब अपने अपने रास्‍ते चल दिए
- हम प्‍लेग्राउंड की ओर
- कुत्‍ता डस्‍टबिन की ओर
- चिड़ी आसमान की ओर
फूटा अंडा वहीं पड़ा रहा
प्रभात का सूरज उग चुका था ।

(Penned after listening a real-life experience of two little kids)

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