Friday, July 2, 2010

किस्‍तों में खुदकुशी

तुम खुदकुशी करने चले हो ?
डरपोक , बेशर्म , पागल : कहीं के !
क्‍या पाओगे मरकर ?
नरक में भी जगह नहीं मिलेगी ,
अरे ! इतनी मुश्किलों से
मानव-योनि मिली है
इसे यूँ न गँवाओ
संघर्ष का नाम ही जीवन है
जूझो-पिसो-घिसटो-भोगो
और करो इंतजार
उसके बुलावे का
कुदरती मौत मरो
अपनी पसंद की नहीं :
खुदकुशी घिनौना पाप है।

खैर !
मुश्किल भी है खुदकुशी करना
सोचना भले आसान हो
उसका क्षण और तरीका
पर तय तभी होता है
जब वक्‍त का बुलावा आता है :
-30वीं सालगिरह पर
-रिटायरमेंट के 20 दिन बाद
-फांसी लगाकर
-ट्रेन की पटरियों पर
-जहर खाकर
या नदी में कूदकर

मैं मानता हूँ
सोचना चाहिए जरूर
हर किसी को
खुदकुशी के बारे में
ताकि महसूस कर सकें
मौत को
जिंदा रहते ही
और कहीं डरते सहमते ही
न गुजर जाए जिंदगी
समझौतों और मोह माया के
प्रपंच में ।

किस्‍तों में खुदकुशी से
बेहतर है
लगाना छलांग
नौंवी मंजिल से
या फिर दौड़ते हुए
सागर की लहरों मे
समा जाना ।

1 comment:

  1. ख़ुदकुशी कायरता है...पलायनवादिता है...कमजोरी है...

    ज़िन्दगी को संभाल कर रखिये
    ज़िन्दगी मौत की अमानत है

    नीरज

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