शरीर पर सिम्पटम उभरने लगे हैं
उसे पता है
इस असाध्य बीमारी के बारे में-
वो कैंसर से पीडि़त है !
कैसे सपने आते होंगे उसको
रात में नींद उचटने पर
क्या होता होगा उसके मन में
अस्पताल में थिरेपी के दौरान
या हाल पूछे जाने पर
उसकी तबीयत का
सहकर्मियों द्वारा
सहानुभूति के तौर पर।
कभी सोचती हूँ
फांसी लगने की तारीख
तय हो जाए
और कैदी को बता दी जाए
तो वो कैसे जीता होगा ?
: पल-पल को
शिद्दत से या बेचैनी में
- काउंट डाउन की तरह।
उसे देखकर मुझे कष्ट होता है
मैं कुछ कह नहीं पाती
बस ममता में दुआ करती हूँ
बारगेन कर ले
मुझे उठाकर दुनिया से
हे ईश्वर !
मेरे बेटे को स्वस्थ कर दे।
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ye count down bada mushkil hai ...jo gujra hai ...jaanta hai bas vahi ...kaash jane ka din kabhi koee kisi ko n baaye.
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना ..
ReplyDeleteइसीलिये जाने का दिन कोई नही बता पाता अगर ऐसा होता तो इंसान मरने से पहले हजार मौत मर चुका होता…………………बेहद संवेदनशील रचना।
ReplyDeleteकभी सोचती हूँ
ReplyDeleteफांसी लगने की तारीख
तय हो जाए
और कैदी को बता दी जाए
तो वो कैसे जीता होगा ?
....maan hone ke dard kaa sahi chitran. acchhi rachna.subhakaamanaayen.
achchha laga !
ReplyDeletearganikbhagyoday.blogspot.com
मंगलवार 13 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/