Monday, June 28, 2010

गर्मी बहुत है

नींद नहीं आती है
करवटें बदलते
रात गुजर जाती है
भीग जाता है तकिया
बालों की बूँदों से
पसीने में
फिर भी अधमुँदी आंखों में
जब आता है सपना
उस पड़ोस वाली झुग्‍गी का
जहां न बिजली है
न पंखा है
न पानी है,
तो मैं डरता हुआ
सो जाता हूँ
कहीं मेरे घर की
बत्‍ती-पानी भी
गुल न हो जाए।

1 comment:

  1. बहुत स्थितियाँ दिक्कतदायी है..बढ़िया अभिव्यक्ति!

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