Thursday, February 17, 2022

Gusse ki dictionary

सब कहते हैं 

गुस्‍सा नहीं आना चाहिये 

इससे सेहत खराब होती है 

पर क्‍या करें 

गुस्सा आ ही जाता हैं 

थोड़ी देर बाद 

शांत भी हो जाता है,

दूध के ऊफान की तरह 

किसी को बहुत जल्‍दी आ जाता है 

किसी को काफी देर बाद आता है 

जैसे अलग-अलग होता है 

हर लिक्विड का BP (बाइलिंग प्‍वांइट

और ..... शायद ब्लड प्रेशर भी) ,

गुस्‍से की डिक्‍शनरी

अक्‍सर बहुत छोटी होती है 

बाद में समझाना पड़ता हैं 

हमारा यह मतलब नहीं था, 

दूसरे को या सिचुएशन को ही 

हम जिम्‍मेदार ठहराते हैं 

इसलिए गुस्‍से से 

अक्सर दूर नहीं हो पाते हैं,

मुझे लगता है 

इंसान को गुस्‍सा 

आना भी जरूर चाहिए : 

जब जरूरी हो 

जहां जरूरी हो 

जिस पर जरूरी हो :

जुल्‍म और जबरदस्‍ती के खिलाफ

शोषण और विषमता के खिलाफ 

झूूठ-फरेब और धोखे के खिलाफ, 

पर पता नहीं चलता उस वक्‍त हमें

इतना गुस्‍सा करना जरूरी था क्या ? 

कभी छोटी-छोटी बातों पर 

ज्यादा आ जाता है तो

कभी बड़ी बातों पर भी

उतना नहीं आता  जितना आना चाहिये या

हम गुस्‍सा पी जाते हैं अपने अंदर ही

बाहर सभ्‍य दिखने-दिखाने के लिए 

पर दबाने से 

गुस्‍सा खत्‍म नहीं हो जाता 

अलबत्‍ता सेहत अंदर से 

खराब जरूर हो जाती है

चूंकि ज़्यादातर गुस्‍सा 

लिख और बोलकर ही 

बाहर निकलता है

इसलिए इसे जाहिर करने की 

हमें डिक्‍शनरी बढ़ानी चाहिये !

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