कान पर चिपका रहता है मोबाइल
आंखें गढ़ी रहती हैं लैपटाप पर
पैदल चलने की आदत नहीं रही
दो और दो का जोड़ करने के लिए
लेना पड़ता है
कैलकुलेटर का सहारा
याद कुछ न आये तो
तलाश लेते हैं उसे
इंटरनेट पर ,
सुविधा बहुत हो गई है
पर बना दिया है
टेक्नोलॉजी ने
थोड़ा बहुत पंगु भी हमें
अपने चंगुल में फंसाकर ,
कविता को कमप्यूटर पर
एडिट , कट-कापी और पेस्ट से
सेट करते हुए
कागज पर कलम से काटना-छांटना
हम भूलते जा रहे हैं
बस अब हम
दवाइयों का नाश्ता करते हुए
अपनी सेहत बचा रहे हैं ।
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