चाँदनी अलसाई तारे थके-थके
अम्बर रंग बदलता मादक पवन बहे
चीड़ नीरवता को मुर्गा बाँग भरे
गंगा के तट पर ऋषि ध्यान धरे
मधुकर लीन रहा गुंजन में
उषा बिखराती लाली मधुबन में।
फुदकती गिलहरी इधर-उधर
नाचता पंख फैलाये मोर
कोयल गाती अपना गीत
कूदते वानर चारों ओर
मधुकर लीन रहा गुंजन में
उषा बिखराती लाली मधुबन में।
चमकती ओस की बूँद
हरी घास के कण पे
धड़कते शांत पेड़ के पत्ते
बहती हवा शनैः-शनैः
मधुकर लीन रहा गुंजन में
उषा बिखराती लाली मधुबन में।
तोड़ती प्यारी पल्लवी पुष्प
गूँथती बालों में माला
घंटियाँ बजती मंदिर में
नहाती घाट पर बाला
मधुकर लीन रहा गुंजन में
उषा बिखराती लाली मधुबन में।
आई जीवन की नई सुबह
नहीं किसी को भी फुरसत
विचरण करने को नभ में
हुए विहग घर से रूख्सत
मधुकर लीन रहा गुंजन में
उषा बिखराती लाली मधुबन में।
चंदा जाता सूरज आता
वक्त चलता ही जाता
काश, रहा होता मन - जैसे
मधुकर लीन रहा गुंजन में
काश, बिखराता आनंद हृदय - जैसे
उषा बिखराती लाली मधुबन में।
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