लेते हैं हम
शपथ
हर साल
खास दिन पर
दो मिनट सीधे खड़े होकर
दोहराते हुए
कागज पर लिखे शब्द -
ईमानदार रहने की
सच बोलने की
शांति-सदभाव की
निडर रहने की
निष्पक्ष रहने की -
फिर……..
भूल जाते है
ऐन वक्त
इम्तहान आने पर
सब कसमें और वायदे
प्रैर्क्टीकलिटी की
देते हुए दुहाई ,
खुद को और खुदा को
धोखा देने का
बढिया और आसान
तरीका
मिल गया है
हमें ।
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इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज