देखकर अपनी आंखों से
सड़क पर उमड़े
जनसैलाब को
और सुनकर
क्रांति के स्वरों की गूंज
उठने लगा हे
मेरे भीतर भी ज्वार
उस मुहिम में
शामिल होने का
जिसे शुरू किया है
एक बूढे ने
छोड़कर खानापीना
व्यवस्था को बदलने की
जिद करते हुए ।
क्या और कब हासिल होगा
मुझे नहीं मालूम
बस :
उम्मीद जग गई है
आग सुलग गई है
मशाल जल गई है
मेरे दिल में :
यह जताने के लिए कि
मैं मुर्दा नहीं हूं
और
दे सकता हूं
कुछ तो
आहुति के तौर पर
इस सामाजिक महायज्ञ में ।
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