Tuesday, May 11, 2010

नफरत का बार्डर

कौन ज्यादा देशभक्त है –
दिखाने की होड़ लगी है
नुमाइश है, जुनून है
नारे हैं, झण्डे हैं
शोर है, जोर है
मन में सबके चोर है।
खुदी के फेर में
खुदा के ही बंदों से
नफरत और दूरी:
यह कैसा देशप्रेम है ?
मोहांध और संकीर्णता का पर्याय।
बार्डर पर गूंजती आवाजें
बोर भी करती है
और शायद दिलों में डर भी।

इस पार भी
इंसानों की वैसी ही शक्लें
उस पार भी,
ये इंसानी हदें हैं
जो पक्षियों और पशुओं की
समझ में नहीं आती
चूंकि वे कम समझदार हैं
इंसान से
जिसने बनावटी रेखाओं से
बाँट दिया है
धरती को, कौम को।
आकाश पर अभी उसका जोर नहीं चला
इसीलिए चिड़िया – कौवे अभी
उड़ रहे हैं आजाद
गगन में
उनकी कोई जाति नहीं (चाहे प्रजाति हो)
उनका कोई मजहब नहीं (चाहे पंख अलग हो)
उनकी कोई भाषा नहीं (चाहे आवाजें अलग हो)
वे परिन्दे हैं - आजाद
हम दरिन्दे हैं - बरबाद।

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