Friday, February 15, 2013

पीले चेहरे वालों का बसंत

सह लेंगे हम जैसे-तैसे
गरमी , बरसात और ठंड
अब तो बस हो जाये अंत
जुल्‍म का , शोषण का
चाहे न आये कभी बसंत 
इंतजार कब तक कोई कैसे करे  
मौसमी सरकार के बदलने का
समस्‍याएं जब हों इतनी ज्‍वलंत
सब कविता की कोरी कल्‍पनायें हैं
जमीन से कभी नहीं मिलता अनंत
अगर रोटी मिल जाये भूखे बच्‍चों को
तो वो ही दे देंगे हमें फूलों की सुगंध ।
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मौसम का चक्‍कर है कहीं गर्मी कहीं ठंड 
सबके जीवन में होते हैं तरह तरह के रंग
दुनिया खेल है द्वंद का कह गए साधु संत
सुख दुख जैसे आते जाते वैसे शीत बसंत
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1 comment:

  1. अगर रोटी मिल जाये भूखे बच्‍चों को
    तो वो ही दे देंगे हमें फूलों की सुगंध ।

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ .... भावपूर्ण रचना

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