Friday, September 7, 2012

केबासी मतलब कौन बनेगा चूतिया

(1)
आज के सारे अखबारों  में
फुल पेज एड छपा है
वो भी कवर पेज पर
इतना बडा़ विज्ञापन तो
देश का प्रधानमंत्री मर जाए
तो भी न छपे ।

अरे बाप रे बाप !

साढ़े आठ बज गए
बच्‍चों !
जल्‍दी आ जाओ
किताबें पढ़ना छोड़ो
टीवी देखने बैठ आओ
खाना बाद में बनेगा
केबीसी शुरू हो रहा है
इसी में मन लगाओ
लग गया नम्‍बर तो
लाटरी खुल जायेगी
आपका भविष्‍य सुधारे के लिए
प्रोफेसर बच्‍चन आ रहे हैं ।


( 2 )
मम्‍मी !    
कौन बना करोड़पति   
हम तो बुद्धू बने
कल रात बैठकर
इडियट- बॉक्‍स के सामने
एक घंटा बरबाद किया शो में
एक घंटा शो की समीक्षा में
रात को नींद में भी
घूमती कुर्सी थी
आज के पेपर की तैयारी
ठीक से न हो पायी
पूरा यकीन है मुझो
वो जरूर बन जायेंगे
अरबपति
जो उड़ा रह है
मजाक
गांव के गरीबों का
स्‍लमडॉग मिलिनोयर बना के
आम आदमी के ख्‍वाबों का
केबीसी दिखा के  
रियलटी से दूर
अपनी फिल्‍मी पापुलरटी का
भरपूर फायदा उठा रहे हैं।

( 3 )

कोई स्‍टोरी नही
सेट का खर्चा नहीं
आसान और हल्‍का -फुल्‍का शो
किसी को भी स्‍क्रीन पर दिखा दो
कुछ भी किसी से सवाल पूछ लो
हींग लगे न फिटकरी
रंग भी चोखा हो जाय
ये बिजनेस और कामर्स
खूब समझाते हैं
इन्‍हें किसी से परहेज नहीं
जो पैसा दे दे
उसका विज्ञापन कर देते है
जो रूपया फेंके
उसकी घरेलू पार्टी में नाच देते है
कुछ भी मुफ्त नहीं है
सब विज्ञापनों का खर्चा
ग्राहक की जेब से आता है ।

(4 )

मेरा सुझाव है
स्‍कूल-टाइम पर
प्रसारित होना चाहिए
केबीसी का शो
ताकि एक टीचर का
खर्चा बच सके
पर फिर
प्राइम टाइम के स्‍लॉट मे
मिलने वाले स्‍पांसर
कहां से आयेंगे  ?
सब परिवार वाले बैठ जाते हैं देखने
किसी सवाल का जवाब ऐसे देते है
मानो इन्‍हीं को मिलने वाली हो रकम
वैसे ही जैसे क्रिकेट का
मैच देखते वक्‍त
सोफे पर बैठे ही
छक्‍का लगाते हैं ।

(5)

कब से बन गए
अमिताभ क्विज मास्‍टर
आमिर खान समाजसेवी
संजय दत्‍त बापू के चेले
इनका कोई वास्‍ता नहीं
ये केवल पैसे के सगे हैं
बुढापे मे इश्किया फिल्‍म बनाते है
रोज नया स्‍वांग रचाते हैं
ये जुआरी है  -   ये बिकाऊ है ।

( 6)

मेरे दिमाग में नया आइडिया है
इन बहुरूपियों पर
कोई सीरियल बनाया जाये
पर कौन करेगा स्‍पांसर उसे
किस चैनल पर
इसलिए
बस लिखकर
ओपन स्‍पेस पर
( कोई अखबार छापेगा भी नहीं )
अपनी भड़ास निकाल रहा हूं
उन भांडों के खिलाफ
जो बेवकूफ बनाने पर तुले हैं
भोली-भली जनता को ।



2 comments:

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  2. Rightly said! I mean, if one calls KBC , a source of information, than its really pathetic ....Information is not knowledge...Its worse for young minds..
    Instead, of addressing real issues like encephalitis among infants, malnutrion in million of indian kids, suicide among farmers and multi billion scams...
    dreams of being crorepati without being person of substance rules the masses....Its sad!

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