Monday, September 24, 2012

बाजार का खेल

आम पेड़ पर लगते है
किसान  उन्‍हें उगाता हे
तोड़कर और पकाकर
कोल्‍ड स्‍टोरेज पहुंचाता है
जिसे बेच कर
उसे पैसे मिलते हैं
इसलिए प्रधानमंत्री सही कहते हैं -
पैसे पेड़ पर नहीं उगते ,  
पैसे मंडी मे बनते हैं
जहां : आढ़ती और दलाल
देशी या विदेशी : सब
मिलकर चूसते है
आम आदमी का खून
जो सचमुच बहुत मीठा है
दशहरी आम की तरह  ,
उन्‍हें मतलब है सिर्फ
आम खरीदने और बेचने से
कैसे उगते हैं आम
उन्‍हें उससे क्‍या लेना देना
बस आमदनी बढानी है अपनी ,
आम लोकल फल है हमारा
उसे ग्‍लोबल बनाने के लिए
आर्थिक  सुधारों के तहत
बुला रही है सरकार
बाइज्‍जत
विदेशी कंपनियों को
जो सिखलायेंगीं हमें
कैसे उगायें -
बिना गुठली का आम
नमकीन फ्लेवर का आम
चौकोर शेप वाला आम
खास वेरायटी का आम
चिपका कर अपना  नाम
रखेंगे वो प्रीमियम दाम
नहीं खा पायेगा हर कोई
पर हो कोई भी सीजन
मॉल में मिलेगा आम
आम का अचार और आम की चटनी
अब मल्‍टीनेशनल कम्‍पनियां बनायेंगीं
उनके पास टेक्‍नालॉजी है
वो आम की चॉकलेट भी बना सकती हे ।
मारकाट मचेगी अब
रिटेल मार्केट में
आम आदमी के पक्ष में
कोई खड़ा नजर नहीं आता ,  
कल रात
एफडीआई पर
एनडीटीवी की डिबेट मे
बॉटम-बार में
लगातार डिस्‍पले
किए जा रहे
कोकाकोला के
सपोर्ट स्‍कूल कैमपेन को
देखकर मुझे हो गया
पक्‍का यकीन कि
अपभोक्‍तावाद के इस दौर में  
सारे खास लोग
व्‍यापारियों की ओर झुके हैं ।









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