Thursday, December 29, 2011

वो कब और कहां गई !

कल रात
न मैं सो पाया
न मैं रो पाया
मुझे अजीब-सा लगा
उसके दुनिया से
चले जाने की
खबर सुनकर
जिससे न की थी
मैने कभी कोई बात
बस जब से उसे देखा
वो कोमा में ही थी
ढाई साल से बंद
अस्‍पताल के एक कोने में -
गाड़ी की पिछली सीट से
सिर के बल
सड़क पर गिरने के बाद
किसी को बचाने की कोशिश में
ड्राइवर का संतुलन बिगड़ने से हुए
मामूली हादसे में
जो मौत का एक
बहाना और कारण बन गया ।

मैं जब भी अस्‍पताल जाता था
उसके कमरें में जरूर बैठता था
थोड़ी देर के लिए -
जो मुझको लगता था
सेघर्ष और पूजा स्‍थल की तरह
जहां जिंदगी और मौत जूझ रहीं थी ,
रोज की दौड़- धूप और उठा-पटक से
दूरस्‍थ होकर
मैं कुछ सोचने को
मजबूर हो जाता था वहां
जीवन की टेढी-मेढ़ी राहों का
गहरा एहसास करते हुए ।
कोई इलाज नहीं बचा था
डाक्‍टर कहते थे
क्‍भी भी होश आ सकता है उसे -
बस इसी उम्‍मीद पर
घडी की टिकटिक सुनते हुए
अंतहीन इंतजार किये जाते थे
घर वाले सब लोग ।
वो ढाई साल से घर नहीं आई
अस्‍पताल का कमरा ही
उसका मायका बन गया था
उसे विदा होना पड़ा यहीं से
कल रात
सच्‍ची ससुराल के लिए ।

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