Monday, December 26, 2011

उसकी याद में

राधिके ।
तू गयी कहॉं !
पता नहीं शायद तुझे भी
खो गयी है तू
जीवन की उलझनों में
उलझा के मुझे
अपनी याद में
खोने के लिए।
दिवस-रात्रि हर क्षण
मेरे साथ है -
तेरा ही स्‍वप्‍न
तेरा वो मुस्‍कराता चेहरा
तेरी वो मृदुल बातें
तेरी वो चंचल ऑंखें
लोग कहते हैं
पागल हो गया हूँ मैं ,
जानते नहीं वो
इस पागलपन में ही ज्ञान है
यही प्रेम का पागलखाना ही
वास्‍तविक विद्यालय है ।
न तो अँधेरा ही है
न ही प्रकाश है
यह शीत ऋतु की
उस कुहरे-भरी प्रभात जैसा है
जब सूर्य की एक किरण
बादलों से जूझती है
अपने अस्तित्‍व बचाने को
और दुनिया में
रौशनी फैलाने को !
अनिश्चिततओं से घिरे हुए
इस जीवनमय गगन में
जागृत है आशा फिर भी
आशा के साथ ,
कभी सोचता हूँ
यह नन्‍हीं आशा ही
जीवन का आधार है
और ईश्‍वर की
इस अलबेली सृष्टि का
मूल, भाव व सार है।
बस इतनी ही विनती है
हे ईश्‍वर
जगाए रखना
इस प्रेरणा-स्रोत को ,
इस ज्‍योति-पुँज को
ताकि बजाता रहूँ
मैं अपनी बांसुरी
तुझमें विलीन होने तक।

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